रास्ते में जब बाहर निकला तो देख कर हैरान रह गया। सारी दुकानें बंद रहीं। अपनी-अपनी दुकानों के सामने बेबस खड़े दुकानदार आपस में बातें करने में लगे रहे। write a short story
Answers
Answer:
please make me brainlist please
गया कि मगन भाई ने उसे कमरा किराये पर नहीं दिया बल्कि उसे कमरा किराए पर देने के नाम पर ठग लिया है.
अब सोचता है तो उसे स्वंय आश्चर्य होता है कि इससे इतनी बड़ी गलती कैसे हो गई? बस कुछ देर के लिए वह उस बस्ती में आया. मगन भाई ने अपनी चाल का बंद कमरा खोलकर उसे बताया 1012 x कक्ष था. जिसके एक कोने में किचन बना हुआ था. उससे लगकर छोटा सा बाथरूम जिसे उर्फ आम में मवरी कहा जा सकता था. कमरे में एक दरवाजा था जो तंग सी गली में खुलता था. दो खिड़कियां थीं हुआ और प्रकाश का अच्छा प्रबंध था. जमीन पर रफ ला दिया था. कमरे का पलासटर जगह जगह से उखड़ गया था परंतु समेनट का था . छत पतरे की थी. गली के दोनों ओर कच्चे झोनपड़ों का सिलसिला था जो दूर तक फैला था. मध्य एक नली बह रही थी. जिससे गंदा पानी उबल कर चारों ओर फैल रहा था जिसकी बदबू से मस्तिष्क फटा जा रहा था. मगन भाई की वह चाल सात आठ कमरों शामिल थी. उसके मन ने फैसला किया कि उसे इस शहर में इतना अच्छा कमरा इतने कम दामों पर किराए पर नहीं मिल सकता है. इस शहर में इससे अच्छे कमरे की आशा भी नहीं रखी जा सकती थी. वह तुरंत कमरा लेने पर राजी हो गया.
दूसरे दिन उसने पच्चीस हजार रुपये मगन भाई को डपाज़ट के रूप में अदा किए. मगन भाई ने तुरंत किराया समझौते के दस्तावेज हस्ताक्षर कर उसके हवाले कर दिए. बिजली और पानी का अपनी तौर पर प्रबंध करने के बाद उसे किराए के रूप हर महीने मगन भाई केवल सौ रुपए अदा करने थे. किराए का करार पत्र केवल ग्यारह महीने के लिए था परंतु मगन भाई ने वादा किया था वह ग्यारह महीने बाद भी वह कमरा खाली नहीं कराएगा. वह जब तक चाहे इस कमरे में रह सकता है. अगर उसका कहीं दूसरी जगह इससे बेहतर प्रबंधन हो जाता है तो वह अपनी डपाज़ट की राशि वापस लेकर कमरा खाली कर सकता है.
उस शाम अपने दोस्त के घर से अपना छोटा सा सामान लेकर दोस्त और उसके घर वालों को अलविदा कहकर अपने नए घर में आ गया. दो तीन घंटे तो कमरे की सफाई में लग गए बाकी थोड़े से सामान को करीने से सजाने में . कमरे में बिजली का प्रबंध था. उसे सिर्फ बल्ब लगाने पड़े. कमरे की सफाई से वह इतना थक गया था कि उस रात वह बिना खाए पए ही सो गया. सवेरे हस्बेआदत सामान्य छह बजे के समीप आंख खुली तो अपने आप को वह तर व ताज़ा महसूस कर रहा था.
बस्ती में पानी आया था. घर के सामने एक सरकारी नल पर औरतों की भीड़ थी. “पानी की व्यवस्था करना चाहिए.” उसने सोचा. परंतु पानी भरने के लिए कोई बर्तन नहीं था. चहलकदमी करते हुए अपने घर से थोड़ी दूर आया तो उसे एक कराने की दुकान दिखी. इस दुकान पर लटके पानी के कैन देखकर उसकी बानछें खुल गईं. कारोबार खरीद कर वह नल पर आया और नंबर लगाकर खड़ा हो गया. नल पर पानी भरती औरतें उसे अजीब नज़रों से घूर कर आपस में एक दूसरे को कुछ इशारे कर रही थीं. उसका नंबर आया तो उसने कैन भरा और अपने घर आ गया. नहा धोकर कपड़े बदले घर में नाश्ता तो बना नहीं सकता था. नाश्ता बनाने के लिए आवश्यक कोई भी वस्तु नहीं थी .
किसी होटल में नाश्ता करने का सोचता हुआ वह घर से बाहर निकल आया. सोचा नाश्ता करने तक ऑफिस का समय हो जाएगा तो वह ऑफिस चला जाएगा. उस दिन वह अपने आप को बेहद चाक और चौबनद और खुश और खुर्रम महसूस कर रहा था. एक एहसास बार बार उसके भीतर एक करोटें ले रहा था कि अब वह इस शहर में बेघर नहीं है. उसका अपना एक घर तो है.