Hindi, asked by jahan99861, 9 months ago

फ़िर िसुधा (धरती ) है संकट में poem in hindi

Answers

Answered by sarikakhajotiya
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Answer:

पृथ्वी मेरी मां की तरह

चिपकाए हुए है मुझे

अपने सीने में।

मेरे पिता की तरह

पूरी करती है मेरी

हर कामनाएं।

पत्नी की तरह

मेरे हर सुख का ख्याल

उसके जेहन में उभरता है।

बहिन की मानिंद

मेरी खुशी पर सब निछावर करती।

भाई की तरह

मेरे हर कष्ट को खुद पर झेलती।

बेटी की तरह

मेरे घर को खुशबुओं से

करती सराबोर।

पृथ्वी एक नारी की प्रतिकृति

झेलती हर कष्ट

अपनों के दिए हुए दंश

लुटती है अपनों से

उसके बाद भी उफ् नहीं।

रुक जाओ दानवों

मत लूटो इस धरा को

जो देती है तुमको

अपने अस्तित्व को जीवनदान।

पर्यावरण को सुधारो।

नदियों को मत मारो

जंगलों पर आरी

खुद की गर्दन पर कटारी।

पॉलिथीन का जंगल

छीन लेगा तुम्हारा मंगल

वाहनों की मीथेन गैस

छीन लेगी तुम्हारी जिंदगी की रेस।

अरे ओ मनुज स्वार्थी...!

प्रकृति और पृथ्वी से तू जिंदा है

क्यों न तू अपने कर्मों से शर्मिंदा है।

भौतिकता का कर विकास

मत कर खुद का विनाश

कर इस धरती को सजीव

बन पृथ्वी का शिरोमणि जीव

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