रिसियन की जहँ रही रिचा जइसन लरिकन का माटी
दुनिया के जन-मन माँ महकई ई भारत कई माटी ॥
धरम धुजा- कस खड़ा हिमालय जस तमाम फहराइब।
खोह-कन्दरा माँ खाले निति ज्ञान कुण्ड दहकाइब ॥
आइ-आई बदरा गोदी माँ जहाँ बोकइयाँ लोरइँ।
कीरति के सामुन्द्र बूड़ि कइ देउतन का दहबोरइँ॥
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- संदर्भ :-प्रस्तुतत पद्यांश रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित हिमालय काव्य से अवतरित है
प्रसंग:-प्रस्तुत पद्यांश में कवि रामधारी सिंह दिनकर ने हिमालय का गुणगान किया है
व्याख्या:-हिमालय कविता में रामधारी सिंह दिनकर ने हिमालय का गुणगान किया है कवि हिमालय को सुख का सागर पांच नदियों वाला ब्रह्म का योग आदि कह कर संबोधित करते हैं जिसकी करुणा गंगा और यमुना किनारा बनकर भारत की पुण्य भूमि में बह रही है हिमालय ने हमेशा भारत की रक्षा करी है और दुश्मनों को अंदर नहीं आने दिया है कवि आगे कहते हैं कि हिमालय की माटी से हमारे भारत के जन-जन महक उठे हैं इस प्रकार कवि ने हिमालय का वर्णन किया है.
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