िूरिशशि ’ मयिव कय एक सवशश्रेष्ठ आनवष्कयर है । इस नवषय पर एक निबांध निनिए ।
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आव्यूह का बहुत लम्बा इतिहास है, लेकिन रेखीय गणना हेतु इसका उपयोग वर्ष 1800 के बाद ही शुरू हो पाया। चीनी पाठ्य "गणित कला के नौ अध्याय" दूसरी सदी में लिखा गया इसका पहला उदाहरण था। जिसमें इसे एक प्रकार के व्यूह संरचना के रूप में हल किया गया था। इसके बाद वर्ष 1545 में इटली के गणितज्ञ गिरोलामो कार्डनो ने इस विधि को चीन से ले कर यूरोप में अर्स मेग्ना के नाम से प्रकाशित किया।[2] जापान के गणितज्ञ सेकी भी इस तरह के विधि से वर्ष 1683 में कई गणितीय समीकरण हल किए।[3] इसके बाद डच गणितज्ञ जेन डे विट्ट ने इसका एक परिवर्तित रूप 1659 में एक पुस्तक में प्रकाशित किया।[4]
गणित में आव्यूह एक अदिश राशियों से निर्मित आयताकार रचना है। यह आयताकार रचना लघु कोष्ठक "()", दोहरे दण्ड "|| ||" अथवा दीर्घ कोष्ठक "[3 3 3 3 ]" के अन्दर बंद होती है। इसमें संख्याओं का एक विशेष प्रकार का विन्यास किया जाता है, अत: इसे आव्यूह, या मैट्रिक्स, की संज्ञा दी गई है। मैट्रिक्स के अवयव संख्याएँ होती हैं किन्तु ये ऐसी कोई भी अमूर्त वस्तु हो सकती है जिनका गुणा किया जा सके एवं जिन्हें जोड़ा जा सके।