राष्टृ भाषा हिन्दी पर निबंध
Answers
Answer:
Explanation:भाषा के द्वारा मनुष्य अपने विचारों को आदान-प्रदान करता है । अपनी बात को कहने के लिए और दूसरे की बात को समझने के लिए भाषा एक सशक्त साधन है ।
जब मनुष्य इस पृथ्वी पर आकर होश सम्भालता है तब उसके माता-पिता उसे अपनी भाषा में बोलना सिखाते हैं । इस तरह भाषा सिखाने का यह काम लगातार चलता रहता है । प्रत्येक राष्ट्र की अपनी अलग-अलग भाषाएं होती हैं । लेकिन उनका राज-कार्य जिस भाषा में होता है और जो जन सम्पर्क की भाषा होती है उसे ही राष्ट्र-भाषा का दर्जा प्राप्त होता है ।
भारत भी अनेक रज्य हैं । उन रध्यों की अपनी अलग-अलग भाषाएं हैं । इस प्रकार भारत एक बहुभाषी राष्ट्र है लेकिन उसकी अपनी एक राष्ट्रभाषा है- हिन्दी । 14 सितंबर 1949 को हिन्दी को यह गौरव प्राप्त हुआ । 26 जनवरी 1950 को भारत का अपना संविधान बना । हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया गया । यह माना कि धीरे-धीरे हिन्दी अंग्रेजी का स्थान ले लेगी और अंग्रेजी पर हिन्दी का प्रभुत्व होगा ।
आजादी के इतने वर्षो बाद भी हिन्दी को जो गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त होना चाहिए था वह उसे नहीं मिला । अब प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि हिन्दी को उस का यह पद कैसे दिलाया जाए ? कौन से ऐसे उपाय किए जाएं जिससे हम अपने लक्ष्य तक पहुँच सकें ।
यद्यपि हमारी राष्ट्र भाषा हिन्दी है, परन्तु हमारा चिंतन आज भी विदेशी है । हम वार्तालाप करते समय अंग्रेजी का प्रयोग करने में गौरव समझते हैं, भले ही अशुद्ध अंग्रेजी हो । इनमें इस मानसिकता का परित्याग करना चाहिए और हिन्दी का प्रयोग करने में गर्व अनुभव करना चाहिए । हम सरकारी कार्यालय बैंक, अथवा जहां भी कार्य करते हैं, हमें हिन्दी में ही कार्य करना चाहिए ।
निमन्त्रण-पत्र, नामपट्ट हिन्दी में होने चाहिए । अदालतों का कार्य हिन्दी में होना चाहिए । बिजली, पानी, गृह कर आदि के बिल जनता को हिन्दी में दिये जाने चाहिए । इससे हिन्दी का प्रचार और प्रसार होगा । प्राथमिक स्तर से स्नातक तक हिन्दी अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाई जानी चाहिए ।
जब विश्व के अन्य देश अपनी मातृ भाषा में पढ़कर उन्नति कर सकते हैं, तब हमें राष्ट्र भाषा अपनाने में झिझक क्यों होनी चाहिए । राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पत्र-व्यवहार हिन्दी में होना चाहिए । स्कूल के छात्रों को हिन्दी पत्र-पत्रिकाएं पढ़ने की प्रेरणा देनी चाहिए । जब हमारे विद्यार्थी हिन्दी प्रेमी बन जायेंगे तब हिन्दी का धारावाह प्रसार होगा । हिन्दी दिवस के अवसर पर हमें संकल्प लेना चाहिए
भले ही हिंगलिश के बहाने हिंदी बोलने वालों की संख्या बढ़ रही है, किंतु हिंगलिश का बढ़ता प्रचलन हिंदी भाषा कीगरिमा के दृष्टिकोण से गंभीर चिंता का विषय है| कुछ वैज्ञानिक शब्दों: जैसे मोबाइल. कंप्यूटर, साइकिल,टेलीविजन एवं अन्य शब्दों: जैसे स्कूल, कॉलेज, स्टेशन इत्यादि तक तो ठीक है, किंतु अंग्रेजी के अत्यधिक एवंअनावश्यक शब्दों का हिंदी में प्रयोग सही नहीं है|हिंदी, व्याकरण के दृष्टिकोण से एक समृद्ध भाषा है| यदि इसकेपास शब्दों का आभाव होता है, तब तो इसकी स्वीकृति दी जा सकती है| शब्दों का भंडार होते हुए भी यदि इस तरहकी मिश्रित भाषा का प्रयोग किया जाता है, तो यह निश्चय ही भाषायी गरिमा के दृष्टिकोण से एक बुरी बात है| भाषासंस्कृति के संरक्षक एवं वाहक होती है| राष्ट्रभाषा की गरिमा नष्ट होने से उस स्थान की सभ्यता और संस्कृति पर भीप्रतिकूल प्रभाव पड़ता है| हमारे पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का कहना है “वर्तमान समय में विज्ञान के मूलकार्य अंग्रेजी में होते, इसलिए आज अंग्रेजी आवश्यक है, किंतु मुझे विश्वास है कि अगले दो दशको में विज्ञान के मूलकार्य हमारी भाषाओं में होने शुरू हो जाएंगे और तब हम जापानियों की तरह आगे बढ़ सकेंगे|”
हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाए जाने के संदर्भ में गुरुदेव रविंदनाथ टैगोर ने कहा था “भारत की सारी प्रांतीय बोलियाँ, जिनमेंसुंदर साहित्यों की रचना हुई है, अपने घर या प्रांत में रानी बनकर रहे, प्रांत के जन-गण के हार्दिक चिंतन की प्रकाशभूमि स्वरूप कविता की भाषा हो कर रहे और आधुनिक भाषाओं के हार की मध्य-मणि हिंदी भारत-भारती होकरविराजती रहे|” प्रत्येक देश की पहचान का एक मजबूत आधार उसकी अपनी भाषा होती है, जो अधिक से अधिकव्यक्तियों के द्वारा बोली जाने वाली भाषा के रूप में व्यापक विचार विनिमय का माध्यम बनकर ही राष्ट्रभाषा (यहाँ राष्ट्रभाषा का तात्पर्य है – पूरे देश की भाषा) का पद ग्रहण करती है| राष्ट्रभाषा के द्वारा आपस में संपर्क बनाए रखकरदेश की एकता और अखंडता को भी कायम रखा जा सकता है|
हिंदी देश की संपर्क भाषा तो है ही, इसे राजभाषा का वास्तविक सम्मान भी दिया जाना चाहिए, जिससे कि यह पूरेदेश को एकता के सूत्र में बांधने वाली भाषा बन सके| देश रतन डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद की गई है वह आज भी प्रासंगिकहै “जिस देश को अपनी भाषा और साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता | अत: आज देश केसभी नागरिकों को यह संकल्प लेने की आवश्यकता है कि वह हिंदी को स्नेह अपनाकर और सभी कार्य क्षेत्रों में इसकाअधिक से अधिक प्रयोग कर इसे व्यवहारिक रुप से राजभाषा एवं राष्ट्रभाषा बनने का गौरव प्रदान करेंगे|”
आशा है आपको हमारा निबंध पसंद आएगा.