राष्ट्र के निर्माण में हिन्दी का योगदान
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अधिकार और कार्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं या एक दसरे के पुरख हैं अधिकार के दिनाक कार्तव्य और कार्तव्यों के बिना अधिकरों का कोई 8 नहीं रहता है इसलिय प्रयाग यह कहा है
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correct answer
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राष्ट्र निर्माण में विद्यार्थीयों का योगदान
इसलिए बासी फूलों को झड़ने दो, नये युवा फूलों को उनका स्थान ग्रहण करने दो। हम राजनीति के इतिहास पर एक विहंगम दृष्टि डालकर देखें तो हमें पता चलता है कि राष्ट्रों की भाग्यलिपियां विद्यार्थियों ने अपने रक्त की स्याही से लिखी हैं। जिस प्रकार नदी अपने तेज़ प्रवाह से अपने किनारों को तोड़ने की क्षमता रखती है तथा हवा तेज गति से चलकर आँधी का रूप धारण कर लेती है और बडे बडे बलशाली वृक्षों को जड़ से उखाड़ फेंकने की शक्ति रखती है इसी प्रकार विद्यार्थी के अन्दर भी वह प्रचण्ड शक्ति और अदमनीय साहस है जिससे यदि वह चाहे तो देश का स्वरूप बदल दे। किसी ने ठीक ही कहा है-
लोग कहते हैं बदलता है ज़माना अक्सर
मर्द वे हैं जो ज़माने को बदल देते हैं।
आज स्वतन्त्रता के लगभग 60 वर्ष पूर्ण हो जाने पर भी हमारे देश ने उतनी प्रगति नहीं कि जितनी कि उसे करना अपेक्षित था। इसका मुख्य कारण यह है देश की प्रगति में हाथ बंटाने का अधिकार कुछ वर्ग विशेष, कुछ अवस्था विशेष, कुछ जाति विशेष, कुछ आश्रम विशेष के व्यक्तियों को ही उपलब्ध हो रहा है। जो लोग स्वयं चलने में असमर्थ हैं वे देश को क्या चलाएंगे! इसलिए केवल युवा विद्यार्थीवर्ग ही राष्ट्र के निर्माण में अपनी निर्णायक भूमिका अदा कर सकता है। विद्यार्थीवर्ग का योगादन इस प्रकार है-
(i) शिक्षा के क्षेत्र में -यदि देश की प्रगति में विद्यार्थियों के योगदान पर गंभीरतापूर्वक विचार किया जाए तो पता चलता है कि उनका सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान एक निष्ठ भाव से और एकाग्र मन से तथा अनुशासन बद्ध होकर विद्याध्ययन करना ही ठहरता है। यदि इस अवस्था में एक निष्ठता का अभाव रहा तो भावी जीवन के उद्देश्यों की पूर्ति बिल्कुल ही असम्भव प्रतीत होती है। भावी जीवन की आधारशिला यदि दुर्बल हुई तो उस पर जो भवन निर्माण होगा वह चिरस्थायी कभी नहीं होगा। वह केवल लड़खड़ाते हुए ही जीवन व्यतीत करेगा। आपकी प्रगति ही देश की प्रगति है। वे शिक्षण बनाने का कार्य भी अपने हाथ में ले सकते हैं तथा देश से अनपढ़ता जैसी लाहनत को दूर करने में अपना सहयोग दे सकते हैं।
ii) सामाजिक क्षेत्र में– विद्यार्थी अपने इलाके में विभिन्न सभाओं का आयोजन करके समाज में फैली कुरीतियों, अन्धविश्वासों, जाति-पाति के नाम पर किया जा रहा भेद-भाव जो हमारे देश की नींव को खोखला बना रहा है और देश की प्रगति उत्पन्न कर रहा है, देश के चारित्रिक निर्माण में सहयोग दे सकते हैं। स्वयं मेवी संस्थाओं का निर्माण करके अकाल पीड़ितों, बाढ़ पीडितों, सैनिकों की शिवाओं के लिए लोगों द्वारा धन एकत्रित करके सहायता कर सकते हैं और राष्ट्र के निर्माण में अपना योगदान दे सकते हैं।
iii) राष्ट्र की सुरक्षा सेवाओं में भाग लेकर–सेना राष्ट्र की सुरक्षा का एक महत्त्वपर्ण अंग है। विद्यार्थी अनुशासित तथा देश भक्त सैनिक बनकर राष्ट्र के निर्माण में अति महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। आज देश की सीमाएँ विदेशी षडयन्त्रों और आतंकवाद से त्रस्त हैं। देश की अस्मिता दांव पर लगी हुई है, देश की अखण्डता को निरन्तर चुनौतियां मिल रही है। ऐसे समय में विद्यार्थीवर्ग का उत्तरदायित्व बहुत अधिक बढ़ जाता है।
(iv) जागरुक नागरिक बनकर–वास्तव में यदि विद्यार्थी देश की उन्नति में कोई महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं तो वह है कि वे किसी भी कठिन से कठिन परिस्थिति में देश की सम्पत्ति को क्षति न पहँचाएं क्योंकि आए दिन अखबारों में पढ़ा जा रहा है, कानों से सुना जा रहा है, आँखों से देखा जा रहा है कि किसी स्थान पर छात्रों ने बसों को आग लगा दी. किसी स्थान पर विश्वविद्यालय का कार्यालय ही जला दिया, किसी स्थान पर पुलिस की गाड़ी पर मिट्टी का तेल छिड़क कर उसे जला दिया गया, इत्यादि-इत्यादि। यदि आज का भारतीय छात्र देश की सम्पत्ति को अपनी समझे और उसकी हानि को अपनी हानि तो निश्चय ही वह राष्ट्र के निर्माण में एक बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकता है।
(v) राजनीति के क्षेत्र में–इतिहास और राजनीति के छात्र देश की प्राचीन सभ्यता और संस्कृति को तथा लोकतंत्र का महत्त्व, मतदान की पुण्यता, नागरिक के अधिकार और कर्त्तव्य आदि विषयों को जनता को समझा कर देश कल्याण का कार्य कर सकते हैं। इन्जीनियरिंग तथा मैडीकल कालेज के छात्र अपने अवकाश के दिनों में गाँवों में जाकर ग्रामीणों की सेवा कर सकत हैं।
तात्पर्य यह है कि छात्रावस्था वह अवस्था होती है जिसमें मनुष्य अटूट शक्ति सम्पन्न होता है। उसमें कार्य करने की अभूतपूर्व क्षमता होती है। उस शक्ति और कार्यक्षमता को यदि सही दिशा मिलती रहे तो उसके मन और मस्तिष्क के घोर्ट सही दिशा में रहेंगे और अवश्य ही लाभदायी सिद्ध होंगे। अन्त में हम यही कहेंगे भारतीय छात्र अपनी पूर्ण शक्ति से देश को आगे बढ़ाएँ, इसी में उनका और देश का हित है।
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किसी भी राष्ट्र की उन्नति का आधार और प्रतिष्ठा उसकी भावी पीढ़ी पर होता है । जो बासी हो गया, जीर्ण हो गया, समयातीत हो गया, उस फूल को डाल से चिपके रहने का कोई अधिकार नहीं है। यही सोचकर शायद कविवर जयशंकर प्रसाद जी ने ठीक ही कहा है-