Hindi, asked by Freefirehub, 8 months ago

राष्ट्र का सम्मान है तो हमारी भी पहचान है ____ निबंध लेखन
200 शब्दों में​

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Answered by unicorn276
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किसी भी राष्ट्र की पहचान उसके भाषा और उसके संस्कृति से होती है और पूरे विश्व में हर देश की एक अपनी भाषा और अपनी एक संस्कृति है जिसके छांव में उस देश के लोग पले बढ़े होते हैं। यदि कोई देश अपनी मूल भाषा को छोड़कर दूसरे देश की भाषा पर आश्रित होता है उसे सांस्कृतिक रूप से गुलाम माना जाता है। क्योंकि जिस भाषा को लोग अपने पैदा होने से लेकर अपने जीवन भर बोलते हैं लेकिन आधिकारिक रूप से दूसरे भाषा पर निर्भर रहना पड़े तो कहीं न कहीं उस देश के विकास में उस देश की अपनाई गई भाषा ही सबसे बड़ी बाधक बनती है। कल्पना कर सकते हैं जिस भाषा अपने बचपन से बोलते हैं और उसी भाषा में अपने सारे कार्य करने पड़े तो आपको आगे बढ़ने में ज्यादा परेशानी नहीं होगी। लेकिन यदि आप जो बोलते हैं उसे छोड़कर कोई दूसरी भाषा में आपको कार्य करना पड़े तो कहीं न कहीं यही दूसरी भाषा हमारे विकास में बाधक जरूर बनती है। ¨हदी भारतीय संस्कृति की संवाहिका है। यह बात राजबाग मोहल्ला निवासी व एम के एस चंदौना महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. युगल किशोर ठाकुर का कहना है। उन्होंने कहा कि ¨हदी वस्तुत: भारत मां के भाल की ¨बदी है। लेकिन आज अपने के कारण ही इस दुर्दशा को प्राप्त है। सिस्टम के साथ-साथ आम लोगों को जिम्मेवार ठहराते हुए कहा कि बच्चा जब तुतली वाणी में बोलने लगता है तो उसी समय से ही हम मधुर शब्द को छोड़ पिताजी व मां की जगह मम्मी-पापा सिखाने लगते हैं। बताया कि सभी को मानसिकता बदलनी होगी। कोई कार्य असंभव नहीं है और आवश्यक नहीं है कि रोमन लिपि में ही किताब लिखी जाए। इससे देवनागरी लिपि में भी लिखी जा सकती है। ऐसा होता है तो हमारी राष्ट्रभाषा विश्व पटल पर उच्च स्थान प्राप्त कर सकती है।

¨हदी पढ़कर ज्ञानी बन सकते हैं हम : शहर स्थित एल एम प्लस टू विद्यालय के प्रधानाध्यापक व ¨हदी विषय की शिक्षक कुमारी पूनम का मानना है कि ¨हदी हमारी राष्ट्रभाषा है फिर भी इसकी उपेक्षा की जाती है। हमारी मानसिकता इस तरह की बनती जा रही है कि अंग्रेजी बोलने वाला ही ज्ञानी होता है। जबकि ऐसा हमारे समाज मे ऐसा कभी नहीं हो सकता। उन्होंने'अंधकार है जहां आदित्य नहीं है। मुर्दा है वह देश जहां साहित्य नहीं है।'इस वाक्य को दर्शाते हुए कहा कि हम ¨हदी पढ़कर भी ज्ञानी बन सकते हैं। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में कवि, साहित्यकार, लेखक को शिक्षण संस्थानों में बच्चों में अभिरुचि पैदा करनी होगी। अंग्रेजी में प्रकाशित पत्र-पत्रिका व किताबों को ¨हदी में भी अनुवाद कर प्रकाशित होनी चाहिए। ताकि ¨हदी की पकड़ मजबूत हो सके।

सरकार व सिस्टम की मजबूत इच्छा शक्ति के बिना नहीं है संभव : हमें दूसरों की भाषा सीखने का मौका मिले तो यह अच्छी बात है लेकिन दूसरों की भाषा के चलते अपनी मातृभाषा को छोड़ना पड़े तो कही न कही दिक्कत का सामना जरूर करना पड़ता है। ऐसे में आज हम बात करते हैं अपने देश भारत के राजभाषा ¨हदी के बारे में जो हमारी मातृभाषा भी है और हमे इसे बोलने में फक्र महसूस करना चाहिए। यह कहना है छात्र-छात्राओं का। पीएचडी अंतिम वर्ष की छात्रा ¨सगयाही निवासी पूजा कुमारी निक्की बताती है कि हमें अपनी मातृभाषा ¨हदी पर गर्व है। लेकिन सरकार व सिस्टम इसके प्रति गंभीर नहीं है। स्थिति यह है कि स्कूलों में इक्का-दुक्का ही ¨हदी के शिक्षक हैं। कही कही तो दूसरे विषय के शिक्षक के हवाले ¨हदी का कार्य सौंप दिया गया है जो खानापूरी करते हैं। स्कूलों में ¨हदी विषय की पाठ्य सामग्री व संसाधन भी उपलब्ध नहीं है। प्राइवेट स्कूलों का दुकान अंग्रेजी से ही चल रहा है। राजबाग निवासी ¨हदी स्नातक द्वितीय वर्ष की छात्रा कुमारी पूजा कहती है कि हरेक जगह सरकारी व गैरसरकारी संस्थानों में अब अंग्रेजी में ही कंप्यूटर के माध्यम से कार्य को बढ़ावा दिया जा रहा है जो खतरनाक है। सरकारी तंत्र को जागरूक होना पड़ेगा। बताया कि ¨हदी में अब कही ज्यादा बात करना शर्मिन्दगी भी महसूस करता है। नौकरी के क्षेत्र में इसका अधिक प्रभाव देखा जा रहा है। बुधनद चौक के छात्र मिथलेश कुमार बताते हैं कि नौकरी, तकनीकी शिक्षा में अंग्रेजी के बढ़ते प्रचलन के कारण ¨हदी दब गई है। हमारे देश की मूल भाषा ¨हदी है लेकिन भारत में अंग्रेजों की गुलामी के बाद हमारे देश के भाषा पर भी अंग्रेजी भाषा का आधिपत्य हुआ। देश तो आजाद हो गया लेकिन ¨हदी भाषा पर अंग्रेजी भाषा का आज भी आधिपत्य कायम है अक्सर यह कहते हुए सुना जाता है की हमारी ¨हदी थोड़ी कमजोर है ऐसा कहने का तात्पर्य यही होता है की उनकी अंग्रेजी भाषा ¨हदी के मुकाबले काफी अच्छी है और यदि भूल से यह कह दे की हमारी अंग्रेजी कमजोर है तो उसे लोग कम पढ़ा लिखा मान लेते हैं क्या यह सही है किसी भाषा पर अगर हमारी अच्छी पकड़ न हो तो क्या इसे अनपढ़ मान लिया जाए शायद ऐसा होना हमारे देश व समाज की विडंबना है।

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