Political Science, asked by premshilalakra460, 1 month ago

राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के वर्चस्व की प्रकृति का वर्णन !करें किन कारणों ने इसकी सहायता की?​

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Answered by shubham3500kumar
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Answer:

भारत के सबसे पुराने राजनीतिक दल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का गठन 1885 में हुआ था और इस पार्टी ने देश की आज़ादी की लड़ाई में बड़ा योगदान दिया था.

आजादी के बाद इसी पार्टी ने सबसे अधिक समय तक देश पर शासन किया.

1947 से अब तक टुकडों-टुकड़ों में कांग्रेस ने कोई 48 सालों तक केंद्र की सरकार चलाई.

इस बीच हालांकि कांग्रेस का कई बार विभाजन हुआ और वर्तमान कांग्रेस भी इसके एक धड़ा ही था जिसे कांग्रेस (आई) यानी कांग्रेस इंदिरा कहा जाता था. बाद में चुनाव आयोग ने इसे ही असली कांग्रेस का दर्जा दे दिया.

जवाहर लाल नेहरु के नाती और इंदिरा गाँधी के बेटे राजीव गाँधी की पत्नी सोनिया गाँधी इस समय कांग्रेस की अध्यक्ष हैं.

उन्होंने 1998 में कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभाला था.

1991 में राजीव गाँधी की हत्या से लेकर 1998 तक कांग्रेस की कमान पीवी नरसिंहराव और सीताराम केसरी ने संभाली थी.

पिछले कुछ लोकसभा चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है हालांकि विधानसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करते हुए कांग्रेस ने 15 राज्यों में सरकारें बना ली थीं.

लेकिन 2003 में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस तीन बड़े राज्यों में हार गई.

बहुत समय तक गठबंधन की राजनीति से परहेज करने के बाद कांग्रेस ने चुनाव पूर्व पूरे देश में गठबंधन करने का फ़ैसला किया है.

गठबंधन के प्रमुख साथियों में एनसीपी या राष्ट्रवादी कांग्रेस भी है.

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी

एनसीपी का गठन कांग्रेस पार्टी के सबसे ताज़ा विभाजन के बाद हुआ था

Explanation:

पार्टी के तीन वरिष्ठ नेता शरद पवार, पीए संगमा और तारिक़ अनवर ने यह तर्क देकर पार्टी छोड़ दी थी कि वे विदेशी मूल के किसी व्यक्ति को प्रधानमंत्री बनाने के ख़िलाफ़ हैं.

ज़ाहिर है कि वे सोनिया गाँधी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने के ख़िलाफ़ थे.

एनसीपी ने सोनिया गाँधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस से 2000 में मिलकर महाराष्ट्र में सरकार बना ली.

इन चुनावों में एनसीपी ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया है. हालांकि इस फ़ैसले की वजह से एनसीपी भी टूट गई है.

एनसीपी के नेता शरद पवार मूल रुप से महाराष्ट्र के नेता हैं और वहाँ उनकी पार्टी का बड़ा असर है.

डीएमके

तमिलनाड़ु में डीएमके का गठन 1949 में किया गया था.

इस पार्टी के गठन का मूल उद्देश्य तमिल हितों की रक्षा करना था. ख़ासकर दक्षिण भारत में उत्तर भारतीय सांस्कृतिक प्रभाव को रोकना, जिसमें हिंदी को राजकीय भाषा के रुप में थोपने का विरोध प्रमुख था.

1972 में यह पार्टी टूट गई और एआईडीएमके का गठन हुआ.

राष्ट्रीय राजनीति में डीएमके की भूमिका 1996 में यूनाइटेड फ़्रंट सरकार के गठन के साथ बढ़ी थी.

1999 का चुनाव डीएमके ने भाजपा के साथ लड़ा था और इन चुनावों में वह कांग्रेस के साथ है.

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे करुणानिधि इस पार्टी ने प्रमुख नेता हैं.

राष्ट्रीय जनता दल

लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल का राजनीतिक प्रभाव मूल रुप से बिहार में है.

चुनावी राजनीति में इस पार्टी को कांग्रेस का सबसे पुराना सहयोगी दल कहा जा सकता है.

इस पार्टी की बिहार के पिछड़े वर्ग और मुस्लिमों के बीच अच्छी पकड़ है और इसी की बदौलत वे गत 13 सालों से राज्य में शासन कर रहे हैं.

पिछले लोकसभा चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन इतना ख़राब था कि लालू प्रसाद यादव ख़ुद अपना चुनाव हार गए थे.

लेकिन बाद में विधानसभा चुनाव में पार्टी जीतकर फिर सरकार बनाने की स्थिति में पहुँच गई.

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