राष्ट्रीय शक्ति के निर्धारण में राष्ट्रीय चरित्र को समझाइए
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वास्तव में राष्ट्रीय नैतिकता राष्ट्रीय एकता का प्रतीक तथा आत्मा है। राष्ट्रीय नैतिकता रखने वाले राष्ट्र पर बाह्य आक्रमण भी सफल नहीं हो सकते हैं। राष्ट्रीय नैतिकता के निर्माण में राष्ट्रीय चरित्र, सरकार के स्वरूप, संस्कृति, नेतृत्व, परिस्थिति आदि का प्रभाव पड़ता है।
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वास्तव में राष्ट्रीय नैतिकता राष्ट्रीय एकता का प्रतीक तथा आत्मा है। राष्ट्रीय नैतिकता रखने वाले राष्ट्र पर बाह्य आक्रमण भी सफल नहीं हो सकते हैं। राष्ट्रीय नैतिकता के निर्माण में राष्ट्रीय चरित्र, सरकार के स्वरूप, संस्कृति, नेतृत्व, परिस्थिति आदि का प्रभाव पड़ता है।
Explanation:
साधारण शब्दों में व्यक्ति के संदर्भ में शक्ति से अभिप्राय है जब एक व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह दूसरे व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह को नियन्त्रित करने और उनसे मनचाहा व्यवहार कराने और उन्हें अनचाहा व्यवहार करने से रोकने की सामर्थ्य या योग्यता से है। जब यही बात सभी व्यक्ति मिलकर राष्ट्र के बारे में अभिव्यक्त करके दूसरे राज्य/राज्यों के संदर्भ में करते हैं तो वह राष्ट्रीय शक्ति होती है।
विभिन्न विद्वानों ने इसकी निम्नलिखित परिभाषाएं प्रस्तुत की हैं-
(१) ऑरगैंस्की - राष्ट्रीय शक्ति दूसरे राष्ट्रों के आचरण अपने लक्ष्यों के अनुसार प्रभावित करने की क्षमता है। जब तक कोई राष्ट्र यह नहीं कर सकता, चाहे वह कितना ही बड़ा क्यों न हो, चाहे वह कितना ही सम्पन्न क्यों न हो, उसे शक्तिशाली नहीं कहा जा सकता है।
(२) पेडलफोर्ड एवं लिंकन- यह शब्द राष्ट्र की भौतिक व सैनिक शक्ति तथा सामर्थ्य का सूचक है। राष्ट्रीय शक्ति सामर्थ्य का वह योग है जो एक राज्य अपने राष्ट्रीय हितों की पूर्ति हेतु उपयोग में लाता है।
(३) जार्ज रचवार्जन बर्जर - शक्ति अपनी इच्छा को दूसरों पर लादने की क्षमता है जिसका आधार न मानने पर प्रभावशाली विरोध सहना पड़ सकता है।
(४) हेन्स जे. मारगेन्थाऊ - शक्ति, उसे कार्यान्वित करने वालों व उनके बीच जिन पर कार्यान्वित हो रही है, एक मनोवैज्ञानिक
संबंध है। यह प्रथम द्वारा द्वितीय के कुछ कार्यों को उसके मस्तिष्क पर प्रभाव डालकर नियन्त्रित करने की क्षमता है। इस प्रकार कह सकते हैं कि राष्ट्रीय शक्ति एक राज्य द्वारा दूसरे राज्य को प्रभावित करने की क्षमता है। परन्तु इस क्षमता के पीछे दण्डात्मक शक्ति भी होती है उसी के डर से शक्ति प्रभावी हो सकती। बिना दण्डात्मक या प्रतिबंध लगाने की क्षमता के एक राष्ट्र दूसरे पर इसे लागू नहीं कर सकता।
परन्तु शक्ति के संदर्भ में कुछ बातों को जानना अत्यंत आवश्यक है। प्रथम, शक्ति की कल्पना रिक्तता के वातावरण में नहीं की जा सकती, अपितु इसके प्रयोग हेतु कम से कम दो या दो से अधिक राष्ट्र/राष्ट्रों के समूह का होना जरूरी है। द्वितीय, शक्ति के संबंध हमेशा दो विरोधियों के मध्य ही नहीं होते, बल्कि कुछ परिस्थितियों में मित्र राष्ट्रों के बीच भी पाये जा सकते हैं। तृतीय, शक्ति का प्रयोग विरोधियों व मित्रों के अलावा तटस्थ राष्ट्रों के बीच भी हो सकते हैं। चतुर्थ, शक्ति को वस्तु या पदार्थ नहीं, बल्कि राष्ट्रों के मध्य संबंधों की स्थिति है। अन्ततः शक्ति के विभिन्न रूप हो सकते हैं।
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