राष्ट्रीय विकास बनाम जनजातीय समाज की विवेचना करें। ⁶marks
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अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribes-ST)
भारत में जनजातीय आबादी संख्यात्मक रूप से एक अल्पसंख्यक समूह होने के बावजूद समूहों की विशाल विविधता का प्रतिनिधित्व करती है।
जबकि जनजातियों की अपनी विशिष्ट संस्कृति और इतिहास है, वे भारतीय समाज के अन्य वंचित वर्गों के साथ अपर्याप्त राजनीतिक प्रतिनिधित्व, आर्थिक वंचना और सांस्कृतिक भेदभाव जैसे विषयों में समानताएँ रखते हैं।
'जनजाति' का श्रेणीकरण सामाजिक और सांस्कृतिक आयाम को दर्शाता है, लेकिन ‘अनुसूचित जनजाति’ के रूप में श्रेणीकरण के राजनीतिक-प्रशासनिक निहितार्थ भी हैं।
अनुसूचित जनजाति की अधिकांश आबादी पूर्वी, मध्य और पश्चिमी पट्टी में संकेंद्रित है, जो नौ राज्यों - ओडिशा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल तक विस्तृत हैं।
उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में लगभग 12 प्रतिशत, दक्षिणी क्षेत्र में लगभग 5 प्रतिशत और उत्तरी राज्यों में लगभग 3 प्रतिशत जनजातीय आबादी निवास करती है।
राजनीतिक और प्रशासनिक इतिहास
उन्नीसवीं शताब्दी में जनजातीय विद्रोहों के परिणामस्वरूप जनजातीय क्षेत्रों को सामान्य विधियों के कार्यान्वयन से बाहर रखने की ब्रिटिश नीति का विकास हुआ।
वर्ष 1833 के रेगुलेशन XIII ने गैर-विनियमित (नॉन-रेगुलेशन) प्रांतों का निर्माण किया, जिन्हें नागरिक (सिविल) एवं आपराधिक न्याय, भू-राजस्व के संग्रह और एवं अन्य विषयों में विशेष नियमों द्वारा शासित किया जाना था। इसने सिंहभूमि क्षेत्र में प्रशासन की एक नई प्रणाली की शुरुआत की।
पूर्वोत्तर क्षेत्र में अंग्रेजों ने वर्ष 1873 में आंतरिक रेखा विनियमन (Inner LIne Regulation) को उस बिंदु के रूप में लागू किया जिसके पार उपनिवेश के लिये प्रचलित सामान्य कानून लागू नहीं होते थे और इस क्षेत्र के बाहर रहने वाले शासितों (Subjects) का यहाँ प्रवेश करना सख्त वर्जित था।
भारत सरकार अधिनियम, 1935 के अनुसार, गवर्नर जनजातीय क्षेत्रों में प्रत्यक्ष रूप से या अपने अभिकर्त्ताओं के माध्यम से नीति निर्धारित कर सकता था।
स्वतंत्रता के उपरांत, वर्ष 1950 में संविधान (अनुच्छेद 342) के अंगीकरण के बाद ब्रिटिश शासन के दौरान जनजातियों के रूप में चिह्नित व दर्ज समुदायों को अनुसूचित जनजाति के रूप में पुन: वर्गीकृत किया गया।