राष्ट्रभाषा भाषा का दूसरा स्वरूप है इस कथन से आप क्या समझते है
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rastriya bhasa regional bhasa ka dusra swarup hai yahi samajhte hain
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हर देश की अपनी राष्ट्रभाषा होती है। सारा सरकारी तथा अर्ध-सरकारी काम उसी भाषा में किया जाता है। वही शिक्षा का माध्यम भी है। कोई भी देश अपनी राष्ट्रभाषा के माध्यम से ही विकास पथ पर अग्रसर होता है। संसार के सभी देशों ने अपने देश की भाषा के माध्यम से ही अनेक आविष्कार किए हैं।
राष्ट्र के निर्माण से हिन्दी भाषा का बहुत योगदान रहा है। हिन्दी भाषा ने तब से राष्ट्र के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जब भारत आज़ाद भी नहीं हुआ था। आज़ादी से पूर्व भारत भाषाओं तथा संस्कृति के मध्य बंटा हुआ था। यहाँ मराठी, बंगाली, गुजराती, गढ़वाली, दक्षिण भारत, राजस्थान, मुस्लिम, सिख इत्यादि संस्कृति विद्यमान थीं।
इनकी भाषाएँ तथा बोलियाँ भी अलग-अलग थी। यह स्वयं ऐसे बंटे हुए थे कि इन्हें मिलाना संभव नहीं था। भारत की गुलामी का यह सबसे बड़ा कारण था। देश के नेताओं को जब इस कमज़ोरी का पता लगा, तो उन्होंने ऐसी भाषा की आवश्यकता पड़ी जो सबको एक कर सके। जिसमें पूरे भारत की छवि विद्यमान हो। हिन्दी में ये गुण देखे गए। फिर क्या था हिन्दी ने सोच के अनुरूप कार्य कर दिखाया और इस भाषा के माध्यम से पूरा देश एक हो गया। जब भारत में एकता विद्यमान हुई, तो आज़ादी मिलना असंभव नहीं रह गया।
1947 में भारत आज़ाद हो गया। यह हिन्दी का ही प्रभाव था। इसे देश की राजभाषा घोषित किया गया और इससे ही कार्य आरंभ होने लगे। फिर क्या था आज भारत ने पीछे मुड़कर नहीं देखा है। यह हिन्दी का ही प्रभाव है कि हम विकाशील देशों की सूची में हैं और यही रफ्तार रही, तो शीघ्र ही विकसित देशों की सूची में स्थान प्राप्त कर जाएँगे।
भारत विभिन्न भाषाओं का देश है। अतः मात्र हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा देना उचित नहीं है। इस तरह सारा देश टुकड़ों में बंट जाएगा। इसके अतिरिक्त अब भारत में अंग्रेज़ी भाषा का बोलबाला है। वह ग्लोबल भाषा बन गई है। अतः हमें उसे अपना लेना चाहिए। यदि हम हिन्दी को अपनाते हैं, तो पिछड़ जाएँगे।