Political Science, asked by jk6532418, 6 months ago

'राष्ट्रपति एक अलंकारिक प्रधान है' स्पष्ट करो?​

Answers

Answered by bhaktihbalwadkar
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Answer:

उत्तर की रूपरेखा :

राष्ट्रपति के पद के बारे में संक्षिप्त चर्चा।

भारतीय राष्ट्रपति की संवैधानिक स्थिति का उल्लेख।

राष्ट्रपति की शक्तियाँ।

भारतीय राष्ट्रपति न केवल संविधान का संरक्षक है, अपितु संपूर्ण भारत का निर्वाचित प्रतिनिधि भी। ये भारत के प्रथम नागरिक तथा राष्ट्र की एकता, अखंडता एवं सुदृढ़ता के भी प्रतीक हैं।

चूँकि भारत में सरकार का स्वरूप संसदीय है, अतः राष्ट्रपति केवल कार्यकारी प्रधान होता है। मुख्य शक्तियाँ प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल में निहित होती हैं। अन्य शब्दों में कहें तो राष्ट्रपति अपनी कार्यकारी शक्तियों का प्रयोग प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल की सहायता व सलाह से करता है।

डॉ. अंबेडकर ने संविधान सभा वाद-विवाद में राष्ट्रपति की स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा, भारतीय संविधान के अंतर्गत राष्ट्रपति की स्थिति वही है, जो ब्रिटिश संविधान के अंतर्गत राजा की है। वह राष्ट्र का प्रमुख होता है, पर कार्यकारी नहीं होता। वह राष्ट्र का प्रतीक है तथा प्रशासन में औपचारिक रूप से सम्मिलित है अथवा एक मुहर के रूप में है जिसके नाम से निर्णय लिये जाते हैं। वह मंत्रिमंडल की सलाह पर निर्भर है तथा उसकी सलाह के विरुद्ध अथवा सलाह के बिना कुछ नहीं कर सकता। अमेरिका का राष्ट्रपति किसी भी सचिव को किसी भी समय हटा सकता है, जबकि भारत के राष्ट्रपति के पास ऐसा करने की शक्ति नहीं है। भारतीय राष्ट्रपति की संवैधानिक स्थिति को समझने के लिये विशेष रूप से अनुच्छेद 53ए, 74 और 75 के प्रावधानों का संदर्भ लिया गया है-

संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी और वह इसका प्रयोग इस संविधान के अनुसार स्वयं या अपने अधिकारियों के द्वारा करेगा (अनुच्छेद 53)। राष्ट्रपति को सहायता तथा सलाह देने के लिये प्रधानमंत्री के नेतृत्व में एक मंत्रिपरिषद होगी। वह संविधान के अनुसार अपने कार्य व कर्त्तव्यों का उनकी सलाह पर निर्वहन करेगा (अनुच्छेद 74)। मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होगी (अनुच्छेद 75)।

यद्यपि राष्ट्रपति के पास संवैधानिक रूप से कोई विवेक की स्वतंत्रता नहीं है परंतु वे परिस्थितीय विवेक स्वतंत्रताओं का प्रयोग (बिना मंत्रिमंडल की सलाह के) कर सकते हैं।

लोकसभा में किसी भी दल के पास स्पष्ट बहुमत न होने पर अथवा जब प्रधानमंत्री की अचानक मृत्यु हो जाए तथा उसका कोई स्पष्ट उत्तराधिकारी न हो। इस परिस्थिति में राष्ट्रपति स्वविवेक से प्रधानमंत्री की नियुक्ति करते हैं तथा उन्हें बहुमत सिद्ध करने का समय देते हैं। वह मंत्रिमंडल को विघटित कर सकता है, यदि वह सदन में विश्वास मत सिद्ध न कर सके। वह लोकसभा को विघटित कर सकता है, यदि मंत्रिमंडल ने अपना बहुमत खो दिया हो।

इसके साथ ही राष्ट्रपति को कई अन्य विधेयकों को पुनर्विचार के लिये भेजने का अधिकार रहता है। यद्यपि 42वें संशोधन अधिनियम में राष्ट्रपति पर प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रिपरिषद की सलाह बाध्यकारी बनाई गई थी, जिसे 44 वें संशोधन द्वारा, ‘पुनर्विचार के बाद दी गई सलाह’ कोबाध्यकारी बनाया गया।

फिर भी राष्ट्रपति के गरिमामय पद व सम्मान की वजह से उनके पुनर्विचार के लिये भेजे जाने का भी विशेष महत्त्व है। अक्तूबर 1977 में राष्ट्रपति के.आर. नारायण ने उत्तर प्रदेश पर राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश को पुनर्विचार के लिये भेज दिया। सरकार ने बाद में राष्ट्रपति शासन न लगाने का निर्णय लिया और उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह की सरकार बच गई थी।

अतः संवैधानिक रूप से वास्तविक ताकत न होने के बावजूद राष्ट्रपति का पद गरिमामय एवं महत्त्वपूर्ण है।

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