राष्ट्रवादी भावनाओं को प्रेरित करने वाले कारकों पर सोदाहरण रोशनी डालिए।
संघर्षरत राष्ट्रवादी आकांक्षाओं के साथ बर्ताव करने में तानाशाही की अपेक्षा लोव
होता है। कैसे?
आपकी राय में
राष्ट्रवाद की सीमाएँ क्या हैं?
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राष्ट्रवाद (nationalism) लोगों के किसी समूह की उस आस्था का नाम है जिसके तहत वे ख़ुद को साझा इतिहास, परम्परा, भाषा, जातीयता या जातिवाद और संस्कृति के आधार पर एकजुट मानते हैं। इन्हीं बन्धनों के कारण वे इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि उन्हें आत्म-निर्णय के आधार पर अपने सम्प्रभु राजनीतिक समुदाय अर्थात् ‘राष्ट्र’ की स्थापना करने का अधिकार है। हालाँकि दुनिया में ऐसा कोई राष्ट्र नहीं है जो इन कसौटियों पर पूरी तरह से फिट बैठता हो, इसके बावजूद अगर विश्व की एटलस(मानचित्र) उठा कर देखी जाए तो धरती की एक-एक इंच ज़मीन राष्ट्रों की सीमाओं के बीच बँटी हुई मिलेगी। राष्ट्रवाद के आधार पर बना राष्ट्र उस समय तक कल्पनाओं में ही रहता है जब तक उसे एक राष्ट्र-राज्य का रूप नहीं दे दिया जाता।
सन् १८६० में जुज़ॅप्पे गारिबाल्दि के नापोलि में प्रवेश करते समय उल्लसित भीड़
राष्ट्रवाद की परिभाषा और अर्थ को लेकर व्यापक चर्चाएँ होती रही हैं। राष्ट्रवाद की सुस्पष्ट और सर्वमान्य परिभाषा करना आसान नहीं है। प्रो. स्नाइडर तो मानते हैं कि राष्ट्रवाद को परिभाषित करना अत्यन्त कठिन कार्य है। लेकिन फिर भी इस विषय में उन्होनें जो परिभाषा दी है वह राष्ट्रवाद को समझने में उपयोगी है। उनके मतानुसार, 'इतिहास के एक विशेष चरण पर राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक व बौद्धिक कारणों का एक उत्पाद - राष्ट्रवाद एक सु-परिभाषित भौगोलिक क्षेत्र में निवास करनेवाले ऐसे व्यक्तियों के समूह की एक मनःस्थिति, अनुभव या भावना है जो समान भाषा बोलते हैं, जिनके पास एक ऐसा साहित्य है जिसमें राष्ट्र की अभिलाषाएँ अभिव्यक्त हो चुकी हैं, जो समान परम्पराओं व समान रीति रिवाजों से सम्बद्ध है, जो अपने वीरपुरूषों की पूजा करते हैं और कुछ स्थितियों में समान धर्म वाले हैं।
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