राष्ट्रवाद की भावना तब पनपती है जब लोग ये महसूस करने
लगते हैं कि वे एक ही राष्ट्र के अंग हैं ।"कथन के पक्ष में तर्क दीजिए
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राष्ट्रवाद (nationalism) लोगों के किसी समूह की उस आस्था का नाम है जिसके तहत वे ख़ुद को साझा इतिहास, परम्परा, भाषा, जातीयता या जातिवाद और संस्कृति के आधार पर एकजुट मानते हैं। इन्हीं बन्धनों के कारण वे इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि उन्हें आत्म-निर्णय के आधार पर अपने सम्प्रभु राजनीतिक समुदाय अर्थात् ‘राष्ट्र’ की स्थापना करने का अधिकार है। हालाँकि दुनिया में ऐसा कोई राष्ट्र नहीं है जो इन कसौटियों पर पूरी तरह से फिट बैठता हो, इसके बावजूद अगर विश्व की एटलस(मानचित्र) उठा कर देखी जाए तो धरती की एक-एक इंच ज़मीन राष्ट्रों की सीमाओं के बीच बँटी हुई मिलेगी। राष्ट्रवाद के आधार पर बना राष्ट्र उस समय तक कल्पनाओं में ही रहता है जब तक उसे एक राष्ट्र-राज्य का रूप नहीं दे दिया जाता।
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जब वह एक दूसरे को एकता के सूत्र में बांधने वाली कोई सांझा बात ढूंढ लेते हैं
सामूहिक अपनेपन की यह भावना आंशिक रूप से संयुक्त संघर्ष के चलते पैदा हुई थी। इनके अलावा बहुत सारे संस्कृतिक प्रक्रियाएं भी हुई थी। जिसके जरिए राष्ट्रीवाद लोगों की कल्पना और दिलोदिमाग पर छा गया था। इतिहास व साहित्य व लोककथाएं व गीत चित्र व प्रतिक सभी ने राष्ट्रवाद को साकार करने में अपना योगदान दिया। साहित्य ने राष्ट्रीय भावनाओं को जागृत करने में मदद की। क्षेत्रीय त्योहारों से भी राष्ट्रवाद के विचार के विकास में वृद्धि हुई। राष्ट्रीयवाद का विचार भारतीय लोक कथाओं के पुनर्जीवित करने के आंदोलन से भी मजबूत हुआ। जैसे-जैसे राष्ट्रीय आंदोलन आगे बढ़ा राष्ट्रवादी नेता लोगों को एकजुट करने और उनमें राष्ट्रवाद की भावना पैदा करने के लिए चिन्हों और पृथ्वी के बारे में और भी ज्यादा जागरूक होते हैं