राष्ट्रवाद पर एक निबंध
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nibandh
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पृष्ठभूमि
यह नीति मानती है कि बुजुर्गों के हित में एक निश्चित कार्यक्रम की आवश्यकता है। इसलिए हमें सुनिश्चत करना है कि बुजुर्गों के अधिकारों का हनन नहीं हो। उन्हें विकास के फायदों में उचित अवसर एवं बराबर का हिस्सा मिले। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के प्रति इन कार्यक्रमों एवं प्रशासनिक गतिविधियों का अधिक संवेदनशील होना जरूरी है। वृद्ध महिलाओं पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होगी ताकि वे लिंग वैधव्य एवं आयु के आधार पर तिहरा तिरस्कार एवं भेदभाव न झेले।
जनगणना सूचांक
जनगणना आकलन में बुजुर्ग लोगों की संख्या वृद्धि एक सर्वाधिक परिघटना है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। लोग दीर्घायु हो रहे हैं। सन 1951-60 के बीच की जीवन- प्रत्याशा जन्म के समय 42 वर्ष थी जो सन 2011-16 के बीच यह और बढ़कर 67 वर्ष तक पहुँच जाएगी। इस प्रकार 1986- 90 से 2011 – 16 की अवधि के पच्चीस वर्षों में देश की कुल आबादी में बुजुर्गों की जीवन प्रत्याशा की गणना में लगभग 9 वर्षों में देश की कूल आबादी ने बुजुर्ग की जीवन प्रत्याशा की गणना में लगभग 9 वर्ष की वृद्धि होने की संभावना है जब यह 58 वर्ष से बढ़कर 67 वर्ष जो जाएगी। महिलाओं के लिए जीवन प्रत्याशा अधिक बढ़ी है। समान अवधि में ही यह बढ़ोतरी करीब 11 वर्ष की है महिलाओं के लिए यह जीवन प्रत्याशा सन 1986-90 के 58 वर्षों से बढ़कर सन 2011- 16 में 69 वर्ष होने की संभावना है। 60 वर्ष के आयु वर्ग में भी जीवन – प्रत्याशा में निरंतर वृद्धि परिलक्षित है और उपरोक्त प्रवृति के अनुरूप महिलाओं में पुरूषों के मुकाबले यह कुछ अधिक है। 1989 – 93 के वर्षों में यह वृद्धि पुरूषों के लिए 15 वर्ष और महिलाओं के लिए 16 वर्ष थी।
जीवन प्रत्याशा में सुधार के परिणामस्वरुप 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की संस्था में वृद्धि हुई है। सन 1901 में भारत में 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोग मात्र 1.2 करोड़ थे। यह आबादी बढ़कर सन 1951 में 2 करोड़ तथा 1991 में 5.7 करोड़ तक पहुँच गई। टेक्नीकल ग्रुप ऑन पॉपुलेशन प्रोजेक्शन (1996) द्वारा सन 1996 – 2016 की अवधि के लिए व्यक्त की नयी संभावित जनसंख्या सन 2013 तक 10 करोड़ का आंकड़ा छु लेगी। सन 2016 के बाद के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा किये गए आंकलन (संशोधन 1996) इंगित करते हैं कि भारत में सन 2030 में 60 वर्ष में अधिक उम्र के व्यक्ति 19.8 करोड़ और सन 2050 में 32.6 करोड़ होंगे। स्पष्टता कूल आबादी में 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के प्रतिशत में निरंतर बढ़ोतरी हुई है। सन 1901 को वह 5.1 प्रतिशत थी जो सन 1991 में बढ़कर हुई है। सन 2016 में इसके 8.9 प्रतिशत तक पहुँच जाने की संभावना है। संयुक्त राष्ट्र संघ (संशोधन, 1996) द्वारा सन 2016 के बाद के लिए दिए गए आंकड़ों के अनुसार सन 2050 तक भारत की आबादी का 21 प्रतिशत 60 वर्ष से अधिक आयु के लोगों के होगा।
उपरोक्त आंकड़ों में यह वृद्धि जनगणना के विस्तृत आधार के कारण वास्तविक जनसंख्या वृद्धि बिलकुल स्पष्ट रूप से उभर कर सामने आ जाएगी। सन 2001- 11 के दशक में 60 वर्ष से अधिक के आयु वर्ग में 2.5 करोड़ लोगों की बढ़ोतरी होने की संभावना है। यह बढ़ोतरी सन 1961 में 60+ के लोगों की कूल संख्या के बराबर होगी। पुन: सन 1991- 2016 के बीच पच्चीस वर्षो में इस आयु वर्ग में 5.54 करोड़ लोगों की वृद्धि संभावित है जो सन 1991 में इसी आयु वर्ग के लोगों की कूल आबादी के करीब – करीब संभावित है जो सन 1991 में इसी आयु वर्ग के लोगों की कूल आबादी के करीब करीब बराबर है। दुसरे शब्दों में सन 1991 से अगले पच्चीस वर्षो की अवधि में 60 वर्ष से अधिक आयु के संख्या करीब दोगुनी हो जाएगी।
सन 1991 में कुल आबादी का 63 प्रतिशत (अर्थात 3.6 करोड़) 60-69 वर्ष के आयु वर्ग के लोगों का था। इन लोगों को अक्सर ‘अपेक्षाकृत कम वृद्ध’ या वृद्ध का दर्जा दिया गया। 80 वर्ष एवं ऊपर के 11 प्रतिशत (अर्थात 60 लाख) वृद्ध थे जिन्हें ‘वयोवृद्ध’ या ‘अतिवृद्ध’ की श्रेणी में रखा गया। सन 2016 में इन आयु वर्गों में लोगों का प्रतिशत समान ही होगा परंतु उनकी संख्या क्रमश: 6.9 करोड़ एवं 1.1 करोड़ संभावित है। इस प्रकार हम उम्मीद कर सकते हैं