राष्टशीत के लिए देश की जनता का जबरदस्त paragraph
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राष्ट्र और राष्ट्रीयता पूर्ण रूप से परस्पर संबद्ध अत्यंत सूक्ष्म तत्व एंव विषय हैं। किसी विशेष भू-भाग पर रहन ेवाले ऐसे लोग राष्ट्र कहलाते हैं, जिनके सुख-दुख आशा-विश्वास, रीति-रिवाज और परंपराएं, उत्सव-त्योहार और भाषा आदि सब-कुछ सांझा हुआ करता है। उनके धार्मिक विश्वास और सांप्रदायिक मान्यतांए अलग हो सकती हैं, पर सभ्यता-संस्कृति की चेतना बड़ी सूक्ष्मता के साथ परस्पर जुड़ी हुई या फिर एक ही हुआ करती है। वे सभी लोग उस भू-भाग या देश-विशेष की धरती की मिट्टी को मां के समान मानते हैं। वहां के प्रत्येक पेड़-पौधे ओर कण-कण के साथ अपनत्व का संबंध माना करते हैं। वह उनके गर्व और गौरव का कारण भी हुआ करती है। उसी सबके नाम से उनकी देशीयता और व्यक्तित्व के अस्तित्व की पहचान बनती और होती है। सभ्यता-संस्कृति भी उसी के कारण एंव दमखम से जानी जाती है। वस्तुत: देश के समान राष्ट्र का कोई प्रत्यक्ष या मूर्त रूप नहीं हुआ करता, वह भावनात्मक ही होता है। फिर भी उसकी रक्षा के लिए, निर्माण और विकास के लिए देशवासी या राष्ट्रजन उसी तरह प्राणों का बलिदान तक कर देने को तैयार रहते हैं, जैसे अपने मां-बहिनों के सम्मान की रक्षा के लिए। इस प्रकार राष्ट्र और राष्ट्रीयता का महत्व स्पष्ट उजागर है।