Hindi, asked by rrafsakhan, 6 months ago

रितिबद्ध व रिति सिद्ध किसे कहते है?​

Answers

Answered by manvigurjar335
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Explanation:

रीतिबद्ध काव्य धारा उन कवियों की है जिन्होंने राजाओं को ज्ञान देने के लिए ग्रंथों की रचना की

riti शब्द का प्रयोग काव्यशास्त्र के लिए हुआ था इसके अधिकांश कवि दरबारी थे

Answered by vidyapradiptandel196
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Answer:

हिंदी के प्रमुख रीतिबद्ध कवि और उनकी प्रमुख रचनाएँ कौन सी हैं ?

9 जवाब

Deepak Singh, काशी गोमती संयुक्त ग्रामीण बैंक में वरीय प्रबंधक (2019 - अभी तक)

November 19, 2019 को जवाब दिया गया · लेखक के 129 जवाब हैं और जवाबों को 1.7 लाख बार देखा गया है

रीतिकाल (1658-1857 ई.) हिंदी साहित्य का उत्तर मध्यकाल कहलाता है। इस काल के काव्य की प्रमुख धारा का विकास कविता की रीति के आधार पर हुआ। रीतिकाल समृद्धि और विलासिता का काल है। साधना के काल भक्तियुग से यह इसी बात में भिन्नता रखता है कि इसमें कोरी विलासिता ही उपास्य बन गयी, वैराग्यपूर्ण साधना का समादर न रहा। सजाव-श्रृंगार की एक अदम्य लिप्सा इस युग के साहित्य में प्रतिबिम्बित होती है। रीति-काव्य के विकास में तत्कालीन राजनीतिक तथा सामाजिक परिस्थितियों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। वस्तुत: ये परिस्थितियाँ इस प्रकार के काव्य सर्जन के अनुकूल थीं। हिंदी के रीतिशास्त्र का आधार पूर्ण रूप से संस्कृत काव्य

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लोकेश सिंह, हिंदी साहित्य के अध्ययन में रुचि

May 4, 2019 को जवाब दिया गया · लेखक के 86 जवाब हैं और जवाबों को 1.6 लाख बार देखा गया है

हिंदी साहित्य इतिहास लेखन को चार भागों में विभाजित किया गया है - आदिकाल या वीरगाथाकाल, भक्तिकाल, रीतिकाल और आधुनिककाल। रीतिकाल के अंतर्गत रीतिबद्ध परंपरा आती है। रीतिबद्ध परंपरा को रीतिकाव्य भी कहते हैं।

इस काव्यधारा के अंतर्गत वे कवि आतें हैं ,जिन्होंने तत्कालीन राजाओं को शास्त्रीय ज्ञान देने के लिए लक्षण ग्रन्थों की रचना की। इसीलिए इस काव्यधारा को लक्षण ग्रंथ परंपरा भी कहते हैं। चूँकि इन कवियों ने ज्ञान को सरस और सरल रूप में प्रस्तुत किया , इसलिए इन्हें आचार्य कवि भी कहा गया।

प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ :-

केशवदास :- रामचन्द्रिका, छंदमाला, कविप्रिया, रसिकप्रिया आदि ।

देव :- रसविलास, भावविलास, प्रेमचन्द्रिक आदि।

मतिराम :- रसराज, ललित ललाम आदि।

कुलपति :- रस रहस्य, ।

भिखारीदास :- काव्यनिर्णय ।

काव्य प्रवृत्ति :-

श्रृंगार प्रधान , जिसमें शुद्ध विलास व भोग की प्रवृत्ति है। पद्माकर का एक उदाहरण दृष्टव्य है :-

“ गुलगुली गिल में गलीचा है , गुनीजन है,

चाँदनी है ,चिक है, चिरागन की माला है।

कहै पद्माकर ज्यों गजक गिजा है सजी ,

सेज है, सुराही है, सुरा है और प्याला है।”

राजाओं को खुश करने की कोशिश में वीरता का अतिशयोक्ति पूर्ण वर्णन भी विद्यमान है । एक दानवीरता का उदाहरण दृष्टव्य है :-

“सम्पति सुमेर की कुबेर की जो पावै ताहि,

तुरत लुटावत विलंब उर धारै ना ।”

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