रीतिकाल की प्रमुख विशेषता है
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रीति का अर्थ शैली है चूँकि इन कवियों ने काव्य शैली की इस विषिस्ट पद्धति का विकास किया इसीलिए इस काल को रीतिकाल कहा जाता हैं . इस काल में अलंकार ,रस ,नायिका भेद ,नख शिख वर्णन छंद आदि काव्यांगों पर प्रचुर रचना हुई है .
रीतिकाल की विशेषताएं
1. आचार्यत्व प्रदर्शन की प्रवृत्ति
यह रातिकाल की मुख्य विशेषता है। इस काल के प्रायः सभी कवि आचार्य पहले थे और कवि बाद मे। उनकी कविता पांडित्य के भार मे दबी हुई है।
2. श्रृंगारप्रियता
यह इस काल की दूसरी विशेषता है। सभी कवियों ने श्रंगार मे अतिशय रूचि दिखायी। यह श्रंगार वर्णन अश्लील कोटि तक पहुँच गया है।
काम झूलै उर मे, उरोजनि मे दाम झूले। श्याम झूलै प्यारी की अनियारी अँखियन मे।।
3. अलंकारप्रियता
अलंकारप्रियता या चमत्कार प्रदर्शन इस काल की तीसरी विशेषता है। अनुप्रास की छटा, यमक की झलक, श्लेष, उत्प्रेक्षा, रूपक, उपमा आदि नाना अलंकारों के चमत्कार से रीतिकाल की कविता चमत्कृत है-- " गग-गग गाजे गगन घन क्वार के।"