रीतिकालीन रचनाओं का प्रधान रस है
Answers
सही जवाब है...
O श्रंगार रस
► रीतिकालीन रचनाओं का प्रधान रस ‘श्रंगार रस’ रहा है।
स्पष्टीकरण:
रीतिकाल में श्रृंगार रस की प्रधानता रही है। रीतिकाल हिंदी साहित्य का वो काल रहा है, जिसकी कालावधि 1650 से 1850 ईस्वी के बीच निर्धारित की गयी है। इस कालक्रम को रीतिकाल नाम से विभक्त किया गया है। इस काल श्रंगार काल भी कहा जाता है। इस युग में अधिकतर कवि ऐसे रहे थे जो या तो दरबारी कवि थे या और राजाओं-बादशहों आदि के प्रशंसा में काव्यों की रचना करते थे अथवा दरबार से बाहर रहकर भी श्रंगार रस की प्रधानता से भी रचनायें करते थे।
रीतिकाल के प्रमुख कवियों में केशवदास, बिहारी, प्रताप सिंह, मतिराम, भूषण, चिंतामणि, रघुनाथ, टीकाराम आदि के नाम प्रमुख हैं।
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Answer:
HELLO DEAR,
रीतिकालिन रस का सही उत्तर है श्रंगार रस।
क्यों की सिंगार का मतलब होता है हमारे रीति रिवाज को बनाए रखना।
इसीलिए रितिका रींगस का सही जवाब है सिंगार रस।
I HOPE IT'S HELP YOU DEAR,
THANKS.