रीतिकाल रचनाओं का प्रधान रस क्या है
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रीतिकाल में श्रृंगार रस की प्रधानता रही है।
हिंदी साहित्य में 1650 से 1850 के बीच के समय को रीतिकाल कहते हैं।
इस काल में कवि लोग श्रंगार रस की प्रधानता से भरी रचनायें करते थे। इस काल के अधिकतर कवि दरबारी कवि होते थे, जो राजा की प्रशंसा में श्रंगार रस काव्य या राजाओं के मनोंरजन हेतु श्रंगार रस की प्रधानता भरी रचनायें करते थे।
रीतिकाल के प्रमुख कवियों में केशवदास, प्रताप सिंह, बिहारी, मतिराम, भूषण आदि रहे हैं।
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श्रंगार रस
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