रीतिकाव्य की प्रमुख धाराओ का परिचय दीजिए
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हिंदी साहित्य में सम्वत् 1700 से 1900 (वर्ष 1643ई. से 1843 ई. तक) का समय रीतिकाल के नाम से जाना जाता है । भक्तिकाल को हिंदी साहित्य का पूर्व मध्यकाल और रीतिकाल को उत्तर-मध्य काल भी कहा जाता है । भक्ति काल और रीति काल दोनों के काल को हिंदी साहित्य का मध्यकाल कहा जा सकता है ।
रीति का अर्थ है : पद्धति । रस, अलंकार, गुण, ध्वनि और नायिका भेद आदि काव्यांगों के विवेचन करते हुए, इनके लक्षण बताते हुए रचे गए काव्य की प्रधानता के कारण इस काल को रीतिकाल कहा गया । रीतिग्रंथों, रीतिकाव्यों तथा अन्य प्रवृत्तियों के कवियों की रचनाओं में भी श्रृंगार रस की प्रधानता के कारण इस काल को श्रृंगारकाल भी कहा जाता है । इसके अतिरिक्त इस काल को अलंकार काल और कला काल की संज्ञाएँ भी दी गई, लेकिन रीतिकाल नाम ही सर्वाधिक सार्थक और प्रचलित नाम है ।
रीतिकाल के प्रवर्त्तक कवियों में केशवदास और चिंतामणि का नाम प्रमुख रूप से लिया जाता है । लेकिन सर्वामान्य रूप से केशवदास को ही रीतिकाल का प्रवर्त्तक कवि माना गया है ।
रीतिकाल के कवियों को मुख्यत: तीन वर्गों में रखा गया है :-
1. रीतिग्रंथकार कवि या लक्षण बद्ध कवि या रीतिबद्ध कवि
2. रीतिसिद्ध कवि
3. रीतिमुक्त कवि
रीतिकाल में उक्त काव्य धाराओं के समानांतर निम्न काव्य धाराएँ भी विकसित होती रही :-
1. नीतिकाव्य
2. भक्ति काव्य
3. वीर काव्य
रीतिकाल की प्रमुख धाराओ का परिचय निम्न प्रकार से दिया गया है।
रीतिकाल की प्रमुख धाराएं तथा प्रवृत्तियां दो मुख्य भागों में विभाजित की गई है।
- रीतिबद्ध काव्य धारा
- रितिमुक्तकव्य धारा
रीतिबद्ध काव्य धारा
- रीतिबद्ध काव्य धारा उन कवियों ने लिखी है जिन्होंने राजा अथवा उनकी पत्नी, प्रेमिकाओं को शास्त्रीय ज्ञान देने हेतु लक्षण ग्रंथों की रचना की।
- ये लक्षण इन कवियों द्वारा पहले संस्कृत में लिखे गए तत्पश्चात उनका ब्रज भाषा में अनुवाद किया गया, उसके बाद उदाहरण के रूप में कविता लिखी जाती।
- रीतिबद्ध काव्य धारा को लक्षण ग्रंथ काव्य धारा भी कहा जाता है व इनके कवियों को आचार्य कहा जाता है।
- रीतिबद्ध काव्य धारा में चिंतामणि त्रिपाठी, कुलपति मिश्र, केशवदास, भिखरीदास, पद्माकर व मतिराम जैसे महत्वपूर्ण कवियों का समावेश किया गया है।
रीतिमुक्त काव्य धारा
- रीतिमुक्त काव्य धारा में रीति परंपरा की साहित्यिक रुढियों या लक्षण से मुक्त रचनाओं का समावेश किया गया है।
- रीतिमुक्त काव्य धारा में काव्य शास्त्र के नियमो का पालन नहीं किया गया है।