Hindi, asked by hiteshbhaskar82699, 1 month ago

'रात्रि की विभीषिका को सिर्फ पहलवान की ढोलक ललकार कर चुनौती देती
रहती थी। पहलवान संध्या से सुबह तक, चाहे जिस ख्याल से ढोलक बजाता हो, किन्तु
गाँव के अर्द्धमृत, औषधि-उपचार-पथ्यविहीन प्राणियों में वह संजीवनी शक्ति ही भरती
थी। बूढ़े-बच्चे-जवानों की शक्तिहीन आँखों के आगे दंगल का दृश्य नाचने लगता
था। स्पंदन-शक्ति-शून्य स्नायुओं में भी बिजली दौड़ जाती थी। अवश्य ही ढोलक की
आवाज में न तो बुखार हटाने का कोई गुण था और न महामारी की सर्वनाश शक्ति को
रोकने की शक्ति ही, पर इसमें संदेह नहीं कि मरते हुए प्राणियों को आँख मूंदते समय
कोई तकलीफ नहीं होती थी, मृत्यु से वे डरते नहीं थे।"
(क) गद्यांश में रात्रि की किस विभीषिका की चर्चा की गई है? ढोलक उसको किस
प्रकार की चुनौती देती थी? लिखिए।
(ख) किस प्रकार के व्यक्तियों को ढोलक से राहत मिलती थी? यह राहत कैसी थी?
(ग) 'दंगल के दृश्य' से लेखक का क्या अभिप्राय है? यह दृश्य लोगों पर किस तरह
का प्रभाव डालता था?​

Answers

Answered by patelroshniji9
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Answer:

iska pura answer chahiye

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