World Languages, asked by vishalsahu1181, 2 months ago

र्तव्य निष्ठा" पाठ से आपको क्या प्रेरणा मि
र गए श्लोको का हिन्दी में अनुवाद कीजिए
) इयं च दृश्यते गडा, पूज्या त्रिपथगा नदी
नानाद्विजगणाकीर्णा सम्प्रपुष्पितकानता ।
सार्थ : प्रवसतो मित्रं भार्या मित्रं गृहे यतः
आतुरस्य भिषड़, मित्रं दानं मित्रं मरिष्यत​

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Answered by senthamarailakshuman
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Answer:

की, योग से विद्या की, मृदुता से राजा की तथा अच्छी स्त्री से घर की रक्षा होती है ।

दारिद्रयनाशनं दानं शीलं दुर्गतिनाशनम्। अज्ञानतानाशिनी प्रज्ञा भावना भयनाशिनी॥

भावार्थ :

दान दरिद्रता को नष्ट कर देता है । शील स्वभाव से दुःखों का नाश होता है । बुद्धि अज्ञान को नष्ट कर देती है तथा भावना से भय का नाश हो जाता है ।

नास्ति कामसमो व्याधिर्नास्ति मोहसमो रिपुः। नास्ति कोप समो वह्नि र्नास्ति ज्ञानात्परं सुखम्॥

भावार्थ :

काम के समान व्याधि नहीं है, मोह-अज्ञान के समान कोई शत्रु नहीं है, क्रोध के समान कोई आग नहीं है तथा ज्ञान के समान कोई सुख नहीं है ।

जन्ममृत्युर्नियत्येको भुनक्तयेकः शुभाशुभम्। नरकेषु पतत्येकः एको याति परां गतिम्॥

भावार्थ :

व्यक्ति संसार में अकेला ही जन्म लेता है, अकेला ही मृत्यु को प्राप्त करता है, अकेला ही शुभ-अशुभ कामों का भोग करता है, अकेला ही नरक में पड़ता है तथा अकेला ही परमगति को भी प्राप्त करता है ।

तृणं ब्रह्मविद स्वर्गं तृणं शूरस्य जीवनम्। जिमाक्षस्य तृणं नारी निःस्पृहस्य तृणं जगत्॥

भावार्थ :

ब्रह्मज्ञानी को स्वर्ग, वीर को अपना जीवन, संयमी को अपना स्त्री तथा निस्पृह को सारा संसार तिनके के समान लगता है ।

विद्या मित्रं प्रवासेषु भार्या मित्रं गृहेषु च। व्याधितस्यौषधं मित्रं धर्मो मित्रं मृतस्य च॥

भावार्थ :

घर से बाहर विदेश में रहने पर विधा मित्र होती है , घर में पत्नी मित्र होती है , रोगी के लिए दवा मित्र होती है तथा मृत्यु के बाद व्यक्ति का धर्म ही उसका मित्र होता है |

वृथा वृष्टिः समुद्रेषु वृथा तृप्तेषु भोजनम्। वृथा दानं धनाढ्येषु वृथा दीपो दिवापि च॥

भावार्थ :

समुद्र में वर्षा व्यर्थ है । तृप्त को भोजन करना व्यर्थ है । धनी को दान देना व्यर्थ है और दिन में दीपक व्यर्थ है ।

नास्ति मेघसमं तोयं नास्ति चात्मसमं बलम्। नास्ति चक्षुसमं तेजो नास्ति चान्नसमं प्रियम्॥

भावार्थ :

बादल के समान कोई जल नहीं होता । अपने बल के समान कोई बल नहीं होता । आँखों के समान कोई ज्योति नहीं होती और अन्न के समान कोई प्रिय वस्तु नहीं होती ।

अधना धनमिच्छन्ति वाचं चैव चतुष्पदाः। मानवाः स्वर्गमिच्छन्ति मोक्षमिच्छन्ति देवताः॥

भावार्थ :

निर्धन व्यक्ति धन की कामना करते हैं और चौपाये अर्थात पशु बोलने की शक्ति चाहते हैं । मनुष्य स्वर्ग की इच्छा करता है और स्वर्ग में रहने वाले देवता मोक्ष-प्राप्ति की इच्छा करते हैं और इस प्रकार जो प्राप्त है सभी उससे आगे की कामना करते हैं ।

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Answered by aryayadv167
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Answer:

र्णा सम्प्रपुष्पितकानता ।

सार्थ : प्रवसतो मित्रं भार्या मित्रं गृहे यतः

आतुरस्य भिषड़, मि

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