र्देखकर बाधा निनिध, बहु निघ्न घबरािे िहीं।
रह भरोसे भाग के र्दुख भोग पछिािे िहीं।
काम ढकििा ही कठिि हो ककिु उकिािे िहीं।
भीड़ म़ें चांचि बिे जो िीर ढर्दखिािे िहीं।।
हो गए एक आि म़ें उिके बुरे ढर्दि भी भिे।
सब जगह सब काि म़ें िे ही नमिे फू िे-फिे।।
आज करिा है नजसे करिे उसे हैं आज ही।
सोचिे-कहिे हैं जो कु छ, कर ढर्दखािे हैं िही।।
माििे जी की हैं, सुििे हैं सर्दा सबकी कही।
जो मर्दर्द करिे हैं अपिी इस जगि म़ें आप ही।।
भूिकर िे र्दूसरों का मुाँह कभी िकिे िहीं।
कौि ऐसा काम है िे कर नजसे सकिे िहीं।।
i. कनि िे इस पद्ाांश म़ें ढकिकी प्रशांसा की है?
ii. भाग्य के भरोसे रहिे िािों को पछिािा क्यों पड़िा है?
iii. कै से िोग सब जगह और सभी कािों म़ें फििे-फू ििे हैं?
iv. कमयिीर सबकी सुिकर भी के िि अपिे जी की क्यों माििे हैं?
v. पद्ाांश हेिु उनचि शीषयक र्दीनजए।
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र्देखकर बाधा निनिध, बहु निघ्न घबरािे िहीं।
रह भरोसे भाग के र्दुख भोग पछिािे िहीं।
काम ढकििा ही कठिि हो ककिु उकिािे िहीं।
भीड़ म़ें चांचि बिे जो िीर ढर्दखिािे िहीं।।
हो गए एक आि म़ें उिके बुरे ढर्दि भी भिे।
सब जगह सब काि म़ें िे ही नमिे फू िे-फिे।।
आज करिा है नजसे करिे उसे हैं आज ही।
सोचिे-कहिे हैं जो कु छ, कर ढर्दखािे हैं िही।।
माििे जी की हैं, सुििे हैं सर्दा सबकी कही।
जो मर्दर्द करिे हैं अपिी इस जगि म़ें आप ही।।
भूिकर िे र्दूसरों का मुाँह कभी िकिे िहीं।
कौि ऐसा काम है िे कर नजसे सकिे िहीं।।
i. कनि िे इस पद्ाांश म़ें ढकिकी प्रशांसा की है?
ii. भाग्य के भरोसे रहिे िािों को पछिािा क्यों पड़िा है?
iii. कै से िोग सब जगह और सभी कािों म़ें फििे-फू ििे हैं?
iv. कमयिीर सबकी सुिकर भी के िि अपिे जी की क्यों माििे हैं?
v. पद्ाांश हेिु उनचि शीषयक र्दीनजए।
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