रुठे सूजन मनाईए जो रुठे सौ बार
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रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार । रहिमन फिरि फिरि पोइए, टूटे मुक्ता हार ।। अर्थ : यदि आपका प्रिय सौ बार भी रूठे, तो भी रूठे हुए प्रिय को मनाना चाहिए, जिस प्रकार यदि मोतियों की माला टूट जाए तो उन मोतियों को बार बार धागे में पिरो लेना चाहिए ।
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परेषां उपकाराय कृतम् कर्म उपकारः कथयते । अस्मिन् जगति सर्वेजनाः स्वीयं सुखं वाञ्छन्ति । परोपकारः दैव भावः अस्ति । मेघाः परोपकाराय जलं वहन्ति ।
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