Hindi, asked by anushkamukherjee2005, 12 hours ago

रैदास के पद कविता के हर पद की व्याख्या किजिये class 10 wbbse​

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Answered by singhbirendra18635
4

Answer:

ok

Explanation:

रैदास के पद का सार :  संत कवि रैदास उन महान सन्तों में अग्रणी थे, जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इनकी रचनाओं की विशेषता लोक-वाणी का अद्भुत प्रयोग है, जिससे जनमानस पर इनका अमिट प्रभाव पड़ता है। उनका सच्चे ज्ञान पर विश्वास था। उन्होंने भक्ति के लिए परम वैराग्य को अनिवार्य माना था। उनके अनुसार ईश्वर एक है और वह जीवात्मा के रूप में प्रत्येक जीव में मौजूद है। इसी विचारधारा के अनुसार, उन्होनें अपने प्रथम पद “अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी” में हमें यह शिक्षा दी है कि हमें ईश्वर किसी मंदिर या मस्जिद में नहीं मिलेंगे या किसी मूर्ति में नहीं मिलेंगे। ईश्वर को प्राप्त करने का एक मात्र उपाय अपने मन के भीतर झाँकना है। कवि ने यहाँ प्रकृति एवं जीवों के विभिन्न रूपों का उपयोग करके यह कहा है कि भक्त और भगवान एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं। उनके अनुसार ईश्वर सर्वश्रेष्ठ हैं और हर जन्म में वे ही सर्वश्रेष्ठ रहेंगे।

अपने दूसरे पद “ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै।” में रैदास जी ने ईश्वर की महत्ता का वर्णन किया है। उनके अनुसार ईश्वर धनी-गरीब, छुआ-छूत आदि में विश्वास नहीं करते और वे सभी का उद्धार करते हैं। वे चाहें तो नीच को भी महान बना सकते हैं। ईश्वर ने नामदेव, कबीर, त्रिलोचन, सधना और सैनु जैसे संतों का उद्धार किया था और वे  हमारा भी उद्धार करेंगे। इस तरह, उन्होंने हमें उस समय के समाज में व्याप्त जात-पाँत, छुआ-छूत जैसे अंधविश्वासों का त्याग करने की सलाह दी है।

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Answered by kaushanimisra97
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Answer: रैदास जी ने भारतीय संस्कृति में गहरी धार्मिक भावनाओं को अपने रचनाओं के माध्यम से व्यक्त किया था। उनकी पद कविता एक सुंदर रचना है जो भगवान के नाम का जाप करने के लिए प्रेरित करती है।

Explanation: निम्नलिखित हैं रैदास जी की पद कविता के कुछ पंक्तियां और उनकी व्याख्याएँ:

 पद - अब कैसे छूटे राम नाम रट लागी l

         प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अंग अंग बस समानी l

         प्रभु जी, तुम  घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा l

         प्रभु जी , तुम दीपक हम बाती, जाकी जोती बरहे दिन राती l

         प्रभु जी, तुम मोती हम धागा, जैसे सोनही मिलत सुहागा |

        प्रभु जी, तुम तुम स्वामी हम दासा, इसी भक्ति करे रैदासा l

व्याख्या - यह पद रैदास जी की उनके भगवान को समर्पित कविता है। यह पद भगवान के गुणों की स्तुति करता है और उन्हें अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा बताता है।

  • पहली पंक्ति कहती है कि जब राम नाम की जाप लग जाती है, तब हमारे जीवन से सारी दुःख और पीड़ा दूर हो जाती है।

  • दूसरी पंक्ति कहती है कि प्रभु जी हमारे लिए चंदन की तरह हैं जो हमेशा हमारे साथ होते हैं। हम सब भगवान के अंग-अंग में समाहित हो जाते हैं।

  • तीसरी पंक्ति में यह कहा गया है कि जैसे चकोर पक्षी चंद्रमा के लिए उत्सुक होता है, उसी तरह हमारे मन में प्रभु जी के प्रति उत्साह होना चाहिए।

  • चौथी पंक्ति कहती है कि हम भगवान के दीपक और हम स्वयं उनकी बाती होते हैं। भगवान की ज्योति हमारे जीवन में हमेशा जलती रहती है।

  • पांचवीं पंक्ति में यह कहा गया है कि हम भगवान के मोती होते हैं जो सुहाग के साथ मिलते हैं। यह बताता है कि हमारा सम्बन्ध भगवान से होना चाहिए|

पद -ऐसी लाल तुझ बिनु कऊनू करे l

      गरीब निवाजू गुसाइया मेरा माथे छत्त्रु धरे ll

      जाकी छोती जगत कऊ लागे ता पर तूही ढेरे l

      नीचउ ऊच करे मेरा गोबिंदु काहू ते न डरे ll

      नामदेव कबीरु तिलोचन्यू सधना सैनू तरे l

      कहि रविदासु सुन्हू रे संतहु हरीजिऊ ते सबै सरे ll

व्याख्या - यह पद रैदास जी के भक्तिभाव से लिखा गया है और इसमें वे प्रभु राम की विभिन्न आवश्यकताओं के सम्बन्ध में बोलते हैं।

  • पहले पंक्ति में रैदास जी बताते हैं कि बिना तेरे, हे राम, मैं कुछ नहीं कर सकता। वे राम को अपनी जीवन की सभी आवश्यकताओं का संबंध बताते हैं और कहते हैं कि राम के बिना मैं बेसहारा हूं।

  • दूसरे पंक्ति में रैदास जी कहते हैं कि गरीब निवाज हे राम, तुम मेरा शरण हो। उनकी स्तुति में उन्होंने यह भी कहा है कि उनका माथा छत्त्र धरने वाले भगवान की प्रतिमूर्ति है।

  • तीसरे पंक्ति में रैदास जी कहते हैं कि जब दुनिया के छोटे छोटे काम मुझे लगते हैं, तब मैं उनसे जुड़ा हुआ हूं, हे राम। वे कहते हैं कि राम ही उनके जीवन का आधार हैं।

  • चौथे पंक्ति में रैदास जी बताते हैं कि मेरा गोबिंद नीचे या ऊपर कर दे, फिर भी कोई डरता नहीं। वे कहते हैं कि उनकी आश्रय लेने से कोई डरता नहीं है|

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