रैदास किस अभिमान को तजने की बात करते हैं और क्यों
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स्वयं रैदास जी एक ऐसे युग में हिन्दू-मुसलमानों को एक साथ एक ही तत्व को ईश्वर मानने की सीख देते हैं जब उनके बीच घनघोर वैमनस्यता थी और अपने धर्म के बारे में अपेक्षाकृत अधिक सतर्क मुस्लिम शासक देश पर शासन कर रहे थे. रैदास कहते हैं-
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