Hindi, asked by mishraadhir4, 11 months ago

रैदास के दोहे हमे सामाजिक भेदभाव दूर करने का संदेश देते है, ।इस कथन के संदर्भ मे अपने विचार लिखिए

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Answered by adi487510
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रैदास एक ही बूँद से, भयो सब विस्तार ।

    मुर्ख है जो करे वर्ण अवर्ण विचार ।।

    – रैदास  

इसके माध्यम से संत रैदास उस #कृष्ण को #मुर्ख बता रहे है । जो इंसान को अलग अलग बांटता है, जो गीता में इंसानो में ही भेद-भाव कर उन्हें अलग-अलग वर्ण अवर्ण जातियों में बांटता है । जबकि रैदास के अनुसार इंसान सभी एक ही है ।

तोडू न पाती, पूंजू न देवा ।  

    बिन पत्थर, करें रैदास सहज सेवा ।।

   – रैदास  

अर्थ- बिना किसी फूल माला, पत्तियां तोड़े बिना, न ही किसी देवी-देवता की पूजा करे बिना, न ही इन पथरों के भगवानों को पूजे बिना अर्थात पूजा कर्मकांड पाखंड अंधविस्वास के बिना इंसान को केवल सत्य कर्म मानवता की सहज सेवा करनी चाहिए. संसार में प्रेम ,भाईचारा, नैतिकता, मानवता ही सबसे बड़ी सेवा है ।

मेरी जाति कुट बांढला,ढोर ढुंवता नित ही बनारस आसा पासा।

   अब विप्र प्रधान तिहि करें दंडवति, तोरे नाम सरणाई रैदासा ।।

   – रैदास  

मैं रैदास नीची जाति का समझा जाता हूँ तथा मेरे जैसे लोग रोजाना बनारस के आसपास मरे हुए पशु ढोते है. अब देखो विप्र(ब्राह्मणों) का प्रधान(रामानंद) मुझे दण्डवत प्रणाम कर रहा है और मेरी शरण में आता है ।”रैदास परचई” में इस किस्से का वर्णन है की रामानन्द ने गुरु रैदास व कबीर से धर्म पर बहस की और उनसे हार गये. तत्पश्चात उन्हें अपना गुरु स्वीकार करते है ।

कहें रैदास सुनो भाई सन्तों, ब्राह्मण के है गुण तीन ।

    मान हरे, धन सम्पत्ति लुटे और मति ले छीन ।।

    – रैदास

रैदास हमारे रामजी दशरथ जे सुत नाहीं ।

    राम रम रह्यो हमीं में, बसें कुटुम्भ माहीं ।।

    – रैदास  

मेरा राम(ईश्वर) वह राम नही है जो दसरथ का बेटा है ।मेरा राम तो मेरे रोम रोम में है, मेरे कर्म में है. मौको कहा ढूंढे रे बन्दे मैं तो तेरे पास में ।

रैदास हमारे रामजी दशरथ जे सुत नाहीं ।

    राम रम रह्यो हमीं में, बसें कुटुम्भ माहीं ।।

    – रैदास  

मेरा राम(ईश्वर) वह राम नही है जो दसरथ का बेटा है ।मेरा राम तो मेरे रोम रोम में है, मेरे कर्म में है. मौको कहा ढूंढे रे बन्दे मैं तो तेरे पास में ।

जात जात के फेर में उलझ रहे सब लोग ।  

    मनुष्यता को खा रहा, रैदास जात का रोग ।।

    जात-जात में जात है, ज्यो केले में पात ।

    रैदास मानस न जुड़ सके, जब तक जात न जात ।।  

    – रैदास

अर्थ- रैदास इस दोहे में ब्राह्मणों आर्यो की बनाई वर्ण-व्यवस्था जाति व्यवस्था की कड़ी आलोचना करते हुए कहते है की ब्राह्मणों का बनाया जातिवाद का यह ज़हर सब में फेल गया है. जिसे देखो वह जाति के इस घिन्होंने दलदल में उलझ रखा है। रैदास कहते है की जाति एक रोग है बिमारी है जो इंसान को खाय जा रही है जिससे इंसानो के अन्दर का इंसान ही ख़त्म हो रहा है. जाति से पनपे भेदभाव, छुआछूत, गैरबराबरी शोषण ने इंसानियत मानवता को ही ख़त्म कर दिया है । अपने दूसरे दोहे में रैदास कहते है की ब्राह्मणों ने इंसान को जातियों जातियो उसमे भी अनगिनत जातियो में बाँट रखा है । रैदास जातियो के इस विभाजन की तुलना केले के कमजोर तने से करते है जो केवल पतियों से ही बना होता है । जैसे केले के तने से एक पत्ते को हटाने पर दूसरा पत्ता निकल आता है ऐसे ही दूसरे को हटाने पर तीसरा चौथा पांचवा .. ऐसे करते करते पूरा पेड़ ही ख़त्म हो जाता है । उसी प्रकार इंसान जातियो में बटा हुआ है । जातियों के इस विभाजन में इंसान बटता बटता चला जाता है पर जाति ख़त्म नही होती, इंसान ख़त्म हो जाता है । इसलिए रैदास कहते है की जाति को ख़त्म करें. क्योकि इंसान तब तक जुड़ नही सकता,एक नही हो सकता, जब तक की जाति नही चली जाती ।


mishraadhir4: thanks
adi487510: plz add answer in brainlist
adi487510: welcome
Answered by narayanchouhan84932
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