रैदास के दोनो पदो की सपसंग वाखया करे।
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रैदास के पद भक्ति एवं प्रेम के सर्वक्षेष्ठ उदाहरण है। भक्तिकालीन युग के रैदास भक्ति मे प्रेम एवं समानता के पक्षधर है। उनका पहला पद उनकी भक्ति एवं श्रद्धा सहित समर्पण भाव को दर्शाता है, जबकि दूसरा पद प्रभु के माध्यम से सामाजिक समता की मॉंग करता है। पहले पद मे प्रभु का सामीप्य प्राप्त करने के लिए रैदास चंदन का पानी, मेघ्ा के प्रति आकर्षित मोर, चॉंद का चकोर, दीपक की बाती, मोती का धागा तथा अपने स्वामी का दास बने रहने की कामना करते है। वही दूसरे पद मे वे प्रभु के माध्यम से सामाजिक विषमता को दूर करने की कामना करते है। यह पद छुआछुत जैसी सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए प्रेरित करता है। नीचहु डच करै मेरा गोविदु कहकर रैदास जाति-प्रथा एवं भेदभाव को समाप्त करने की इच्छा व्यक्त करते है।
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