Hindi, asked by rimpybhatia82, 1 month ago

रैदास के दोनो पद ससवर गायन हेतु कं ठसथ करे।​

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Answered by bhatiamona
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रैदास के दोनो पद ससवर गायन हेतु कं ठसथ करे।​

(1) अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी।

प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अँग-अँग बास समानी।

प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा।

प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती।

प्रभु जी, तुम मोती हम धागा, जैसे सोनहिं मिलत सुहागा।

प्रभु जी, तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भक्ति करै रैदासा॥

पहला पद – रैदास के पहले पद का केंद्रीय भाव यह है कि वह उनके प्रभु के अलग-अलग  भक्त बन कर अपनी भक्ति व्यक्त की है | वह  अपने ईश्वर की भक्ति में इस तरह डूबे की उन्हें प्रभु से अलग नहीं किया जाता है | जब भक्त पर भक्ति का रंग पूरी तरह से चढ़ जाता है। एक बार जब भगवान की भक्ति का रंग भक्त पर चढ़ जाता है तो वह फिर कभी नहीं छूटता। कवि का कहना है कि यदि भगवान चंदन हैं तो भक्त पानी है।

जब वर्षा होने वाली होती है और चारों तरफ़ आकाश में बादल घिर जाते हैं, तो जंगल में उपस्थित मोर अपने पंख फैलाकर नाचे बिना नहीं रह सकता।

जैसे दीपक में बाती जलती रहती है, वैसे ही, एक भक्त भी प्रभु की भक्ति में जलकर सदा प्रज्वलित होता रहता है। ईश्वर मोती हैं, तो भक्त एक धागे के सामान है, जिसमें मोतियों को पिरोया जाता है | रैदास जी स्वयं को एक दास और प्रभु को स्वामी कहते हैं।

(2) ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै।

गरीब निवाजु गुसईआ मेरा माथै छत्रु धरै।।

जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै।

नीचहु ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै॥

नामदेव कबीरु तिलोचनु सधना सैनु तरै।

कहि रविदासु सुनहु रे संतहु हरिजीउ ते सभै सरै॥

दूसरा पद – रैदास के दूसरे पद का केंद्रीय भाव यह है कि उनके प्रभु सब के लिए एक सम्मान रखने वाले है | वह किसी को छोटा-बड़ा , ऊँचा-नीचा , गरीब-अमीर नहीं मानते उनके लिए सब एक बराबर है | वह अब पर दीन-दुखियों पर अपनी दया-दृष्टि बनाए रखते है। सर्वगुण संपन्न, दयालु और समदर्शी है। वह निडर है तथा गरीबों के रखवाले हैं। ईश्वर अछूतों के उद्धारक हैं तथा नीच को भी ऊँचा बनाने की क्षमता रखनेवाले सर्वशक्तिमान है।प्रभु सर्वगुण सम्पन्न सर्वशक्तिमान है। वे निडर है तथा गरीबों के रखवाले है। ईश्वर अछूतों के उद्धारक हैं तथा नीच को भी ऊँचा बनाने वाले है।

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