'रुदन में कितना उल्लास, कितनी शाँति,<br />कितना बल है। जो कभी एकांत में बैठकर<br />किसी की स्मृति, किसी के वियोग में<br />सिसक-सिसक कर और बिलख-बिलख कर<br />नहीं रोया, वह जीवन के ऐसे सुख से<br />वंचित है जिस पर सैकड़ों हँसियाँ न्यौछावर<br />है। हँसी के बाद मन खिन्न हो जाता है,<br />आत्मा क्षुब्ध हो जाती है। रुदन के पश्चात<br />एक नवीन स्फूर्ति, एक नवीन जीवन, एक<br />नवीन उत्साह का अनुभव होता है।"
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SORRY BRO, I CAN'T UNDERSTOOD YOUR QUESTION PROPERLY
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