रुधिर परिसंचरण तंत्र का सचित्र वर्णन कीजिए
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उपर्युक्त वर्णन से स्पष्ट हैं कि रुधिर महाशिराओं सक दाहिने अलिंद में आता है। वहाँ से हृत्संकुंचन के समय निलय में जाता है। निलय के संकुचित होने पर फुप्फुसी धमनी में होता हुआ फुप्फुस में चला जाता है। वहाँ ऑक्सीजन लेकर, रुधिर चार फुप्फुसी शिराओं द्वारा बाएँ अलिंद में जाता है और उसके संकुचन करने पर रुधिर बाएँ निलय में चला जाता है। बाएँ निलय में संकुचित होने पर रुधिर महाधमनी में अग्रसर हो जाता है। इस धमनी की शाखाएँ, जिनका नीचे उल्लेख किया गया है, शरीर में फैली हुई हैं। रुधिर इनके द्वारा अंगौं में संचार करके केशिकाओं (Capillaries) में होता हुआ, शिराओं द्वारा फिर हृदय के दाहिने भाग में लौट आता है और फिर वही चक्र आरंभ होता है। यही रुधिर परिसंचरण कहलाता है।
हृदय में स्वयं संकुचन करने की शक्ति है। वह प्रति मिनट 72 बार संकुचन करता है, अर्थात् एक बार संकुचन में 0.8 सेकंड लगता है। इस काल में 0.1 सेकंड तक अलिंद का संकुंचन होता हैं, शेष 0.7 सेकंड वह शिथिल अवस्था में रहता है। निलय में 0.3 सेकंड तक संकुचन होता है, शेष काल में वह शिथिल रहता है। इस प्रकार सारा हृदय 0.4 सेकंड तक शिथिलावस्था में रहता है। हृदय का संकोच प्रकुंचन (Systole) और शिथिलावस्था अनुशिथिलन