रियासतों के भारत में विलय
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उस वक्त रियासतों के विलय का काम देश के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल और वीपी मेनन को सौंपा गया था। ... जिन पांच रियासतों ने भारत में विलय करने से इनकार कर दिया था वो थीं त्रावणकोर, हैदराबाद, भोपाल, जोधपुर और जूनागढ़ रियासत।
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नई दिल्ली: वैसे तो 15 अगस्त 1947 का दिन भारत के ऐतिहासिक दिनों में से एक है लेकिन इस दिन से जुड़ी कुछ ऐसी भी बातें हैं जिसके बारे में हर शख्स नहीं जानता है। इस दिन जहां एक ओर देश में आजादी का जश्न मनाया जा रहा था, तो वहीं कुछ राज्य ऐसे भी थे जिन्होंने स्वतंत्र राज्य का दर्जा पाने के लिए और दूसरे वजहों से भारत में शामिल होने से इनकार कर दिया था। उस वक्त रियासतों के विलय का काम देश के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल और वीपी मेनन को सौंपा गया था। इसके बाद लुईस माउंटबेटन के नेतृत्व में सभी रियासतों की बातचीत शुरू हुई। कई रियासतें तो खुद स्वतंत्र देश घोषित करने की मांग करने लगी, लेकिन पांच रियासतों को छोड़कर बाकी सभी ने भारत में विलय कर लिया। जिन पांच रियासतों ने भारत में विलय करने से इनकार कर दिया था वो थीं त्रावणकोर, हैदराबाद, भोपाल, जोधपुर और जूनागढ़ रियासत। आइए जानते हैं कैसे हुआ इन रियासतों का भारत में विलय…
त्रावणकोर रियासत:
भारत में विलय से इनकार करने वाली रियासतों में त्रावणकोर सबसे पहली रियासत थी। इस रियासत के दीवान और वकील सर सीपी रामास्वामी अय्यर ने विलय के मुद्दे पर हाथ पीछे खींच लिए थे। इतिहासकारों की मानें तो विलय ना करने की सलाह अय्यर को मोहम्मद अली जिन्ना से मिली थी।
हालांकि, कहा यह भी जाता है कि सीपी रामास्वामी अय्यर ने ब्रिटिशों से गुप्त समझौता कर रखा था। इस समझौते के पीछे वजह यह भी बताई जाती है कि ब्रिटिश त्रावणकोर से निकलने वाले खनिजों पर अपना नियंत्रण रखना चाहते थे। लेकिन बाद में सीपी अय्यर के खिलाफ लोगों ने प्रदर्शन किया और यहां तक कि उन पर जानलेवा हमला भी हुआ। बाद में वो रियासत को भारत में मिलाने के लिए तैयार हो गए और आखिरकार त्रावणकोर भारत का हिस्सा बना।
हैदराबाद रियासत:
हैदराबाद के निजाम मीर उस्मान अली बहादुर ने 12 जून 1947 को ही आजाद देश बनाने की घोषणा कर दी थी। यहां तक कि अपनी निजी सेना तक बना ली थी। जनता निजाम के इस फैसले के खिलाफ थी और लगातार आंदोलन कर रही थी। इस बीच सरदार पटेल ने हैदराबाद पर सैन्य कार्रवाई का फैसला लिया और 13 सितंबर 1948 को ‘ऑपरेशन पोलो’ के नाम से कार्रवाई शुरू कर दी गई। बाद में निजाम ने हथियार डाल दिए और भारत में विलय को राजी हो गए। इस तरह ऑपरेशन पोलो के आगे निजाम को झुकना पड़ा।
भोपाल रियासत:
भोपाल के नवाब हमीदुल्ला खान ने शर्त रखी कि उन्हें या तो एक आजाद संघ बनने दिया जाए, या सेक्रेटरी जनरल बनकर पाकिस्तान जाने दिया जाए। उन्होंने यह भी कहा कि वे भोपाल की कमान अपनी बेटी को देंगे, लेकिन बेटी ने मना कर दिया। 1948 में नवाब ने भोपाल के स्वतंत्र रहने की घोषणा की। विरोध स्वरूप विलीनीकरण आंदोलन हो गया। लोगों पर गोलियां चलाई गईं, पर आंदोलन नहीं रुका। 30 अप्रैल 1949 को नवाब ने हार मान ली। 1 जून को भोपाल भारत का हिस्सा हो गया।
जोधपुर रियासत:
इस रियासत का राजा हिंदू होने के बावजूद पाकिस्तान का हिस्सा बनना चाहता था। दरअसल, जोधपुर के महाराजा हनवंत सिंह को मोहम्मद अली जिन्ना ने कराची के बंदरगाह पर पूर्ण नियंत्रण देने का लालच दिया था। जब यह बात वल्लभभाई पटेल को पता लगी तो उन्होंने इसका तोड़ निकाला। उन्होंने जिन्ना से बड़े प्रस्ताव और भारत में रहने के फायदे बताए। यह चाल कामयाब रही और जोधपुर आज भारत का हिस्सा है।
जूनागढ़ रियासत:
गुजरात की जूनागढ़ रियासत भी 15 अगस्त 1947 को भारत का अंग नहीं थी। कठियावाड़ राज्यों में जूनागढ़ सबसे प्रमुख रियासत थी। जूनागढ़ के नवाब मोहम्मद महाबत खानजी तृतीय की अधिकांश प्रजा हिंदू थी। जूनागढ़ के नवाब ने मुस्लिम लीग के नेता सर शाह नवाज भुट्टो को राज्य के मंत्रिमंडल में जगह दे दी। भुट्टो राज्य का कार्यभार संभालते ही नवाब को पाकिस्तान में शामिल होने के लिए दबाव बनाने लगे। पाकिस्तान ने जूनागढ़ को शामिल करने की बात मान ली तो भारतीय नेताओं की भृकुटी टेढ़ी हो गई। जूनागढ़ के नवाब का रवैया जिन्ना के दो-राष्ट्रों के सिद्धांत के खिलाफ था। भारतीय नेताओं ने जूनागढ़ का आर्थिक रूप से काट दिया। नवाब पाकिस्तान भाग गए। वल्लभभाई ने पाकिस्तान से जूनागढ़ में जनमत संग्रह कराने की मांग की। आखिरकार भारतीय फौजों और पाबंदियों के दबाव में जूनागढ़ 20 फरवरी 1948 को जनमत संग्रह कराया गया और 91 प्रतिशत लोगों ने भारत में शामिल होने की इच्छा जाहिर की। नतीजा यह हुआ कि जूनागढ़ भारत का अंग बन गया।
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