रचना के आधार पर किसी प्रकार के रास्ते से उपवाक्य प्रयुक्त होते हैं
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मनुष्य सामाजिक प्राणी है। वह समाज में रहकर अपने मन के भाव दूसरों को बताना चाहता है तथा उनके विचारों को सुनना-जानना चाहता है। इसके लिए वह भाषा का सहारा लेता है। यह भाषा उसके मुंह से शब्दों या वाक्यों के माध्यम से व्यक्त होती हैं।
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शब्दों की रचना वर्णों के सार्थक मेल से होती है। इन्हीं सार्थक शब्दों के सार्थक एवं व्यवस्थित मेल से वाक्य बनते हैं। वाक्य भाषा की सबसे छोटी इकाई हैं, जिनके द्वारा लिखने या बोलने वाले के मन का आशय समझ में आ जाता है। इस तरह हम कह सकते हैं कि “मनुष्य के विचारों को व्यक्त करने वाला शब्द समूह, जो व्यवस्थित हो तथा पूर्ण आशय प्रकट कर सके, वाक्य कहलाता है।”
वाक्य के गुण –
वाक्य में निम्नलिखित बातों का होना ज़रूरी है –
1. सार्थकता-वाक्य रचना के लिए ज़रूरी है कि उसमें प्रयुक्त सभी पद सार्थक हों।
उदाहरण –
राम पार्क में खेलता है।
मैं घर जाकर खाना खाऊँगा।
2. योग्यता-इसका मतलब है-क्षमता। इसका अर्थ यह है कि शब्दों में सार्थक होने के साथ-साथ प्रसंग के अनुसार अर्थ देने की क्षमता भी होनी चाहिए।
उदाहरण –
(i) पवन पानी खाता है।
⇒ पवन खाना खाता है।
(ii) श्याम खाना पीता है।
⇒ श्याम पानी पीता है।
3. आकांक्षा-इसका अर्थ है-इच्छा। इसका आशय यह है कि वाक्य अपने आप में पूरा होना चाहिए। उसमें कोई भी शब्द कमनहीं होना चाहिए, जिसके कारण वाक्य में अधूरापन लगे।
उदाहरण –
(i) लड़के खाना हैं। (खा रहे)
⇒ लड़के खाना खा रहे हैं।
(ii) सैनिक लड़ हैं। (रहे)
⇒ सैनिक लड़ रहे हैं।
4. पदक्रम-वाक्य का सही अर्थ जानने के लिए शब्दों का उचित पदक्रम में होना ज़रूरी है। पदक्रम के अभाव में वाक्य का सही अर्थ नहीं निकलता।
उदाहरण –
(i) सारे देश के नागरिक कर्तव्यनिष्ठ हैं। ⇒ देश के सारे नागरिक कर्तव्यनिष्ठ हैं।
(ii) गाय का ताकतवर दूध होता है। ⇒ गाय का दूध ताकतवर होता है।
5. अन्वय-इसका अर्थ है-मेल। वाक्य में कर्ता, वचन, लिंग, कारक आदि में होना ज़रूरी है। इसके बिना वाक्य का पूर्ण अर्थ नहीं निकलता।
उदाहरण –
(i) मेरा देश में अनेक नदियाँ बहता हैं। ⇒ मेरे देश में अनेक नदियाँ बहती हैं।
(ii) चूहें किताबें कुतर गई। ⇒ चूहे किताबें कुतर गए।