* रचना के आधार पर वाक्य-भेद पहचानकर लिखिए-
1. ध्यान से देखा तो पाया कि चश्मा दूसरा है।
2. पानवाले के खुद के मुँह में पान हुँसा हुआ था।
3. केवल एक चीज़ की कसर थी जो देखते ही खटकती थी।
4. हालदार साहब ने पान खाया और धीरे से पूछा।
5. धान के पानी-भरे खेतों में बच्चे उछल रहे हैं।
6. जब जाड़ा आता तब वे एक काली कमली ऊपर से ओढ़े रहते।
7. बालगोबिन भगत मँझोले कद के गोरे-चिट्टे आदमी थे।
8. कातिक आया नहीं कि बालगोबिन भगत की प्रभातियाँ शुरू
हुईं, जो फागुन तक चला करतीं।
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Answer:
1.कन्यादान' कविता में माँ की मूल चिन्ता अपनी भोली, सरल स्वभाववाली और लोक व्यवहार से अपरिचित बेटी के भविष्य को सुरक्षित और सुखी बनाना है। इसलिए वह अपने जीवन में प्राप्त अनुभवों के आधार पर लड़की को ऊँचे-ऊँचे आदर्शों और उपदेशों के बजाय समय के अनुकूल ठोस और व्यावहारिक शिक्षाएँ देती है।
2.पानवाले के मुँह में खुद पान हुँसा हुआ था। वह एक काला मोटा और खुशमिज़ाज आदमी था। हालदार साहब का प्रश्न सुनकर वह आँखों-ही-आँखों में हँसा। उसकी तोंद थिरकी।
3.केवल एक चीज़ की कसर थी जो देखते ही खटकती थी। नेताजी की आँखों पर चश्मा नहीं था। यानी चश्मा तो था, लेकिन संगमरमर का नहीं था। एक सामान्य और सचमुच के चश्मे का चौड़ा काला फ्रेम मूर्ति को पहना दिया गया था।
4.हालदार साहब ने पान खाया और धीरे से पानवाले से पूछा - 'क्यों भई, क्या बात है? आज तुम्हारे नेताजी की आँखों पर चश्मा नहीं है?' पानवाला उदास हो गया। उसने पीछे मुड़ कर मुँह का पान नीचे थूका और सिर झुका कर अपनी धोती के सिरे से आँखें पोंछता हुआ बोला - 'साहब!
5.बच्चे पानी में खेतों में उछल रहे बच्चे अपने पापा के खेतों के पानी में उछल रहे हैं लहसुन के गेहूं के धान सरसों के किसान ने लाया और उसके बाद उसने मिट्टी में वह पानी को मिलाकर सरसों का धान बनाया जिससे प्रकृति की सुंदरता बड़ी!!
6.जब जाड़ा आता, एक काली कमली ऊपर से ओढ़े रहते। मस्तक पर हमेशा चमकता हुआ रामानंदी चंदन, जो नाक के एक छोर से ही, औरतों के टीका की तरह, शुरू होता। गले में तुलसी की जड़ों की एक बेडौल माला बाँध रहते। ऊपर की तस्वीर से यह नहीं माना जाए कि बालगोबिन भगत साधु थे।
7.बालगोबिन भगत मँझोलेकद के गोरे-चिट्टे व्यक्ति थे जिनकी आयु साठ वर्ष से अधिक थी। उनके बाल सफेद थे। वे दाढ़ी तो नहीं रखते थे पर उनके चेहरे पर सफेद बाल जगमगाते ही रहते थे। वे कपड़े बिलकुल कम पहनते थे।
8.बालगोबिन भगत' पाठ के लेखक 'रामवृक्ष बेनीपुरी' हैं। ... लेखक ने इस पाठ के माध्यम से वास्तविक साधुत्व का परिचय दिया है। गृहस्थी में रहते-हुए भी व्यक्ति साधु हो सकता है। साधु की पहचान उसका पहनावा नहीं अपितु उसका व्यवहार है।
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रचना के आधार पर वाक्य-भेद पहचानकर लिखिए-
1. ध्यान से देखा तो पाया कि चश्मा दूसरा है।
2. पानवाले के खुद के मुँह में पान हुँसा हुआ था।
3. केवल एक चीज़ की कसर थी जो देखते ही खटकती थी।
4. हालदार साहब ने पान खाया और धीरे से पूछा।
5. धान के पानी-भरे खेतों में बच्चे उछल रहे हैं।
6. जब जाड़ा आता तब वे एक काली कमली ऊपर से ओढ़े रहते।
7. बालगोबिन भगत मँझोले कद के गोरे-चिट्टे आदमी थे।
8. कातिक आया नहीं कि बालगोबिन भगत की प्रभातियाँ शुरू
हुईं, जो फागुन तक चला करतीं।