Hindi, asked by manu6425, 1 year ago

रचनात्मक कार्य
2 ‘दया ही धर्म है विषय पर 100.150 शब्दों में अनुच्छेद लिखो।
3 नीचे दी गई कविता की पंक्तियों की तरह अपनी लेखनी द्वारा करुणा और ममता की ।
मूर्ति माँ' विपय पर स्वरचित कविता लिखें। सर्वश्रेष्ठ कविता को स्कूल की वार्षिक पत्रिका
सुरागिनी में प्रकाशित किया जाएगा।
उसकी हर दुआ में मेरा नाम है।
उसकी वजह से ही, जग में मेरी पहचान है।
मेरा क्या वजूद था इस दुनिया में
उसने मुझे इस काबिल बनाया है।
तभी तो यह जग मुझे पहचान पाया है-
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Answers

Answered by bhatiamona
4

Answer:

दया ही धर्म है |

दया ही अपने आप में सबसे बड़ा धर्म है | हर मनुष्य में दया भावना होनी चाहिए | हमारे आचरण में दया होनी चाहिए , सबसे प्यार से हंस कर बात करनी चाहिए | दया एक ऐसी शक्ति है जो मनुष्य को एक साथ रहने की प्रेरणा देती है | दया का मतलब यहाँ यह नहीं हम किसी को दिखावा कर रहे है या किसी को अहसास दिलाना नहीं होता , किसी को दुःख देना नहीं होता | दया का असल मतलब है किसी की दिल से मदद करना जिसको मदद की जरूरत है | किसी से गलती  हो जाए तो उसे गलती का एहसास दिला कर उसे माफ कर देना और आगे बढ़ने की   प्रेरणा देना |

दयालु हृदय में परमात्मा का रूप होता है।   जहाँ दया नहीं वहाँ सत्य नहीं होता |

दया अपने आप में प्रसन्नता, प्रफुल्लता का मधुर झरना है। जिस हृदय में दया निरन्तर निर्झर होती रहती है वहीं स्वयंसेवी आह्लाद, आनन्द के मधुर स्वर निनादित होते रहते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि दयालु व्यक्ति सब को  ख़ुशी देख कर बहुत खुश हो जाता है | दया से दूसरों का विश्वास जीता जाता है।  

यह कविता माँ पर है इन पंक्तियों का मतलब है ,

एक बच्चा अपनी माँ के लिए कहता है,

माँ की हर दुआ में मेरा नाम है| चाहे मैं कितना बड़ा इंसान बन जाऊंगा , या फिर गलती करूंगा , फिर भी माँ की हर दुआ में मेरा नाम है|

अगर आज मैं बड़ा इंसान बन गया हूँ उसके पीछे माँ की हर दुआ की वजह है  आज पूरी दुनिया मैं मेरा नाम है, पहचान है |

माँ ने मुझे इस काबिल बनाया है , पढ़ाया है , अपने सपने तोड़े , मुझे काबिल बनाया है , तभी यह सारी दुनिया मुझे पहचान पाई है | यह सब मेरी माँ की दुआ का असर है |

Answered by shishir303
2

दोनों प्रश्नों के उत्तर निम्नानुसार होंगे।

(1)

‘दया ही धर्म’ है विषय पर अनुच्छेद

दया ही सबसे बड़ा धर्म है। दया और करुणा एक दैवीय गुण के समान हैं। जिसमें दया है वो ही धर्म का सच्चा उपासक है। वो देवों के सदृश है। किसी के प्रति दया हमारी संवेदनशीलता को दर्शाती है और एक संवेदशील व्यक्ति कभी किसी का अहित नही कर सकता है। यदि सब एक-दूसरे के प्रति दया का भाव रखें तो ये संसार स्वर्ग के समान हो जाये। किसी के प्रति दया दिखाकर हम केवल उसके हृदय को ही नही बल्कि भगवान के हृदय को भी जीत लेते हैं। दया हमारे अंदर की घृणा, द्वेष, हिंसा, छल-प्रपंच को मिटाती है और हमारे अंदर सकारात्मक गुण विकसित होते हैं। ये संसार ही दया पर टिका हुआ है, इस संसार में कुछ लोग निर्दयी बन बैठे थे पर सब लोग निर्दयी नही हुये। यदि सब निर्दयी बन गये होते तो इस संसार में हाहाकार मच जाता और मानव का अस्त्तित्व ही खतरे में पड़ जाता। हम भगवान से उनसे दया की प्रार्थना करते हैं पर हमें स्वयं दूसरों के प्रति दयालु होना पड़ेगा फिर भगवान की दया स्वतः ही हमें प्राप्त हो जायेगी।

(2)

माँ पर स्वरचित कविता प्रस्तुत है

माँ की तो निराली है माया।

बिन माँगे सबकुछ है पाया।

माँ के आँचल में जग समाया।

तुमसे बनी है मेरी काया।

माँ तुम मेरा अभिमान हो।

माँ तुम मेरा जहान हो।

माँ तुम मेरी पहचान हो।

माँ तुम मेरी शान हो।

ओ सुन लो मेरी माँ

ओ मेरी पालनहारी

तुम बिन मेरा कौन है

तुम  हो सबसे प्यारी

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