Raghuvansh mahakavya ke pratham sarg ka saransh apne sabdo mai likhiye
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'रघुवंश' कालिदास की सर्वाधिक प्रौढ़ काव्यकृति है। 'कुमारसम्भव' की तुलना में इसका फलक विस्तीर्णतर है। अनेक चरित्रों और नाना घटना प्रसंगों की वज्रसमुत्कीर्ण मणियों को कवि ने इसमें एक सूत्र में पिरों दिया है और उनके माध्यम से राष्ट्र की गौरवशाली परम्पराओं, आस्थाओं और संस्कृति की महतनीय उपलब्धियों की तथा समसामयिक सामंतीय समाज के अध:पतन की महागाथा उज्ज्वल पदावली में प्रस्तुत कर दी है। दिलीप और रघु जैसे उदात्त चरित्रों के आख्यान से आरम्भ कर राम के चरित्र को भी रघुवंश प्रस्तुत करता है और 'अग्निवर्ण' जैसे विलासी राजा को भी।
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