रहिए लटपट काटि दिन, बरु घामे माँ सोय।
छाँह न बाकि बैठिये, जो तरु पतरो होय॥
जो तरु पतारे होय, एक दिन धोखा देहैं।
जा दिन बहै बयारि, टूटि तब जर से जैहैं॥
कह ‘गिरिधर कविराय’ छाँह मोटे की गहिए।
पाती सब झरि जायँ, तऊ छाया में रहिए॥
(i) निम्नलिखित शब्दों के अर्थ लिखिए – [2]
(क) पतरो (ख) बयारि (ग) पाती (घ) मोटे
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