रहीम के काव्य में नैतिक मूल्यों की सुंदर अंजना हुई है इस कथन की व्याख्या
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नैतिक शिक्षा वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से लोग दूसरों में नैतिक मूल्यों का संचार करते हैं। यह कार्य घर, विद्यालय, मन्दिर, जेल, मंच या किसी सामाजिक स्थान (जैसे पंचायत भवन) में किया जा सकता है|
व्यक्तियों के समूह को हीं समाज कहते है। जैसे व्यक्ति होंगे वैसा ही समाज बनेगा। किसी देश का उत्थान या पतन इस बात पर निर्भर करता है कि इसके नागरिक किस स्तर के हैं और यह स्तर बहुत करके वहाँ की शिक्षा-पद्धति पर निर्भर रहता है। व्यक्ति के निर्माण और समाज के उत्थान में शिक्षा का अत्यधिक महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। प्राचीन काल की भारतीय गरिमा ऋषियों द्वारा संचालित गुरुकुल पद्धति के कारण ही ऊँची उठ सकी थी। पिछले दिनों भी जिन देशों ने अपना भला-बुरा निर्माण किया है, उसमें शिक्षा को ही प्रधान साधन बनाया है। जर्मनी इटली का नाजीवाद, रूस और चीन का साम्यवाद, जापान का उद्योगवाद युगोस्लाविया, स्विटजरलैंड, क्यूबा आदि ने अपना विशेष निर्माण इसी शताब्दी में किया है। यह सब वहाँ की शिक्षा प्रणाली में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने से ही संभव हुआ। व्यक्ति का बौद्धिक और चारित्रिक निर्माण बहुत सीमा तक उपलब्ध शिक्षा प्रणाली पर निर्भर करता है।
आज ऐसी शिक्षा की आवश्कता है, जो पूरे समाज और देश में नैतिकता उत्पन्न कर सके। यह नैतिकता नैतिक शिक्षा के द्वारा ही उत्पन्न की जा सकती है। चूँकि संस्कृत में नय धातू का अर्थ है जाना, ले जाना तथा रक्षा करना । इसी से सब्द 'नीति' बना है । इसका अर्थ होता है ऐसा व्यवहार, जिसके अनुसार अथवा जिसका अनुकरण करने से सबकी रक्षा हो सके । अतः हम कह सकते हैं कि नैतिकता वह गुन है, और नैतिक शिक्षा वह शिक्षा है, जो कि समाज के प्रत्येक व्यक्ति सम्पूर्ण समाज तथा देश का हित कर करती है।
सामाजिक जीवन की व्यवस्था के लिए कुछ नियम बनाए जाते हैं, जब ये नियम धर्म से संबंधित हो जाते हैं तो उन्हें नैतिक नियम कहते हैं और उनके पालन करने के भाव अथवा शक्ति को नैतिकता कहते हैं। धर्म और नैतिकता मनुष्य की आधारभूत आवश्यकता है। बिना उनके उसे मनुष्य नहीं बनाया जा सकता, अतः इनकी शिक्षा की व्यवस्था अनिवार्य रूप से होनी चाहिए।
वर्तमान विश्व के विकास के प्रमुख आधार विज्ञान और प्रौद्योगिकी है। वर्तमान विश्व में न केवल ज्ञान का विस्फोट, जनसंख्या का विस्फोट, गतिपूर्ण सामाजिक परिवर्तन आदि हो रहे हैं, अपितु हमारे परिवार तथा समाज का ढांचा भी उसी गति से परिवर्तित हो रहा है। प्रचार विचार-विमर्श तथा विचार-विनियम के नवीन प्रभावी साधन विकसित हो रहे हैं। इन सभी का हमारे नैतिक मूल्यों पर प्रभाव पड़ा है। आज आवश्यकता इस बात की है कि विज्ञान-आधारित विकास को जीवन-शक्ति हमारे नैतिक एवं आध्यात्मिक आधारों से प्राप्त है।