रहीम के काव्यों में सौंदर्य का वर्णन कीजिए
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रहीम के काव्यों में काव्यगत सौंदर्य
( क ) भाव-पक्ष-
रहीम अत्यन्त ही लोकप्रिय कवि हैं। इनकी नीति के दोहे जन-साधारण की जिह्वा पर रहते हैं।
अनुभूति की सत्यता के कारण ही इनके दोहों को जनसाधारण द्वारा बात-बात में प्रयुक्त किया जाता है।
नीति के अतिरिक्त रहीम के काव्य में भक्ति, वैराग्य, श्रृंगार, हास, परिहास आदि के भी बहुरंगी चित्र देखने को मिलते हैं।
मुसलमान होते हुए भी एक हिन्दू की भाँति इनमें श्रीकृष्ण के प्रति अटूट श्रद्धा है।
इनके नीति विषयक दोहों में जीवन की गहरी पैठ है।
बरवै नायिका-भेद में शास्त्रीय ज्ञान की झलक है।
(ख) कला-पक्ष-
भाषा-शैली- रहीम की भाषा अवधी और ब्रजी दोनों हैं। ‘बरवै नायिका-भेद’ की भाषा अवधी और रहीम दोहावली’ की भाषा ब्रज है। अरबी, संस्कृत आदि कई भाषाओं के मर्मज्ञ होने के कारण इनकी रचनाओं में उक्त भाषाओं के शब्द प्रयुक्त हुए हैं। उनकी भाषा सरल, स्वाभाविक एवं महत्त्वपूर्ण है।रहीम की शैली वर्णनात्मक शैली है। वह सरस, सरल और बोधगम्य है। उनमें हृदय को छू लेने की अद्भुत शक्ति है। रचना की दृष्टि से रहीम ने मुक्तक शैली को अपनाया है।
रस-छन्द-अलंकार- रहीम के काव्य में श्रृंगार, शान्त और हास्य रस का समावेश है। श्रृंगार में संयोग और वियोग दोनों का वर्णन किया है।रहीम के प्रिय छन्दों में सोरठा, बरवै, सवैया प्रमुख हैं। काव्य में प्राय: दृष्टान्त, रूपक, उत्प्रेक्षा, श्लेष, यमक आदि अलंकारों का प्रयोग हुआ है।
रहीम के काव्यों में सौंदर्य का वर्णन :
- रहीम मध्य काल के कवि थे । उनका काव्य भक्ति पे आधारित होता था इसलिए उनको भक्ति वादी कवि भी कहते हैं।
- इन्होंने श्रृंगार , भक्ति और नीति का बहुत सुंदर निरूपण किया हैं । यह विशेषकर अपने नीतिपरक दोहों के लिए प्रसिद्ध हैं ।
- रहीम के दोहों में रस , छंद , अलंकार का समावेश हैं । इनके काव्यों में शांत, श्रृंगार और हास्य रस देखा जाता हैं ।
- इनके छंदों में सबसे प्रसिद्ध सोरठा , बरवै, सवैया हैं।
- इनके काव्य में दृष्टान्त, रूपक, उत्प्रेक्षा, श्लेष, यमक आदि अलंकारों का उपयोग हुआ हैं ।
- रहीम ने व्यंगतामक शैली का प्रयोग किया हैं और इनके काव्य में भाषा सरल, स्वाभाविक एवं महत्त्वपूर्ण है।