Hindi, asked by priyanshuthakur192, 10 months ago


रहीम के प्रथम पाँच
दोहों का
अपने शब्दों में में likhe​

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Answered by itzcutiepie777
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Answer:

1. पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।

अर्थ: कबीर जी कहते हैं उच्च ज्ञान पा लेने से कोई भी व्यक्ति विद्वान नहीं बन जाता, अक्षर और शब्दों का ज्ञान होने के पश्चात भी अगर उसके अर्थ के मोल को कोई ना समझ सके, ज्ञान की करुणा को ना समझ सके तो वह अज्ञानी है, परन्तु जिस किसी नें भी प्रेम के ढाई अक्षर को सही रूप से समझ लिया हो वही सच्चा और सही विद्वान है।

2. चाह मिटी, चिंता मिटी, मनवा बेपरवाह,

2. चाह मिटी, चिंता मिटी, मनवा बेपरवाह,जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह।

अर्थ: इस दोहे में कबीर जी कहते हैं इस जीवन में जिस किसी भी व्यक्ति के मन में लोभ नहीं, मोह माया नहीं, जिसको कुछ भी खोने का डर नहीं, जिसका मन जीवन के भोग विलास से बेपरवाह हो चूका है वही सही मायने में इस विश्व का राजा महाराजा है

3. बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,

3. बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।

अर्थ: इस दोहे में कबीर जी नें एक बहुत ही अच्छी बात लिखी है, वे कहते हैं जब में पुरे संसार में बुराई ढूँढने के लिए निकला मुझे कोई भी, किसी भी प्रकार का बुरा और बुराई नहीं मिला। परन्तु जब मैंने स्वयं को देखा को मुझसे बुरा कोई नहीं मिला। कहने का तात्पर्य यह है कि जो व्यक्ति अन्य लोगों में गलतियाँ ढूँढ़ते हैं वही सबसे ज्यादा गलत और बुराई से भरे हुए होते हैं।

4. माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोये

4. माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोयेएक दिन ऐसा आयेगा मैं रौंदूंगी तोय।

अर्थ: मिटटी कुम्हार से कहती है, तू क्या मुझे गुन्देगा मुझे अकार देगा, एक ऐसा दिन आयेगा जब में तुम्हें रौंदूंगी। यह बात बहुत ही जनने और समझने कि बात है इस जीवन में चाहे जितना बड़ा मनुष्य हो राजा हो या गरीब हो आखिर में हर किसी व्यक्ति को मिटटी में मिल जाना है।

5. धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,

5. धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।

अर्थ: कबीर दास जी का कहना है हर चीज धीरे धीरे से पूरा होता है इस संसार में, माली सौ बार सींचने पर भी फल तभी आते हैं जब उस फल का ऋतु आता है। जीवन में हर कोई चीज अपने समय में ही पूरी होती है ना कोई समय से पहले ना कोई समय के बाद।

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Answered by Anonymous
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Answer:

दोहा:

“जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटी जाहिं। गिरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत नाहिं।”

अर्थ:

रहीम अपने दोहें में कहते हैं कि किसी भी बड़े को छोटा कहने से बड़े का बड़प्पन कम नहीं होता, क्योंकि गिरिधर को कान्हा कहने से उनकी महिमा में कमी नहीं होती।

क्या सीख मिलती है:

रहीम दास जी के इस दोहे से माध्यम से हमें यह सीख मिलती है कि बड़प्पन नाम से नहीं बल्कि कामों से दिखता है। इसलिए किसी भी बड़े को छोटा कहने पर उसका बड़प्पन कम नहीं होता।

रहीम दास का दोहा नंबर 2 – Rahim Ke Dohe 2

रहीम दास जी का यह दोहा उन लोगों के लिए है जो लोग अपनी असफलता के लिए या फिर किसी गलत काम के लिए खुद को नहीं बल्कि गलत लोगों से मित्रता यानि कि बुरी संगति को दोष देकर खुद को संतोष देते हैं।

दोहा:

“जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग। चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग।”

अर्थ:

रहीम जी ने कहा की जिन लोगों का स्वभाव अच्छा होता हैं, उन लोगों को बुरी संगती भी बिगाड़ नहीं पाती, जैसे जहरीले साप सुगंधित चन्दन के वृक्ष को लिपटे रहने पर भी उस पर कोई प्रभाव नहीं दाल पाते।

क्या सीख मिलती है:

महाकवि रहीम दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें सदैव अपनी बुद्धि और विवेक से काम करना चाहिए और कभी खुद पर किसी दूसरे का बुरा प्रभाव नहीं पड़ने देना चाहिए क्योंकि जब तक हम खुद अच्छे नहीं बनेंगे और खुद का आचरण सही नहीं रखेंगे तब तक हम दूसरों को भी अपनी असफलता के लिए कोसते रहेंगे।

रहीम दास का दोहा नंबर 3 – Rahim Ke Dohe 3

आज के समाज में कई लोग ऐसे होते हैं जिन्हें रिश्तों की कदर नहीं होती है और वे बड़ी आसानी से रिश्ता तोड़ लेते हैं और यह नहीं समझते कि प्यार का रिश्ता बडा़ ही नाजुक होता है जो एक बार टूट जाए तो उसे आसानी से दोबारा नहीं जोड़ा जा सकता है। ऐसे लोगों के लिए रहीम दास जी ने अपने इस दोहे में बड़ी सीख दी है।

दोहा:

“रहिमन धागा प्रेम का, मत टोरो चटकाय। टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय”

अर्थ:

रहीम ने कहा कि प्यार का नाता नाजुक होता हैं, इसे तोड़ना उचित नहीं होता। अगर ये धागा एक बार टूट जाता हैं तो फिर इसे मिलाना मुश्किल होता हैं, और यदि मिल भी जाये तो टूटे हुए धागों के बीच गांठ पड़ जाती हैं।

क्या सीख मिलती है:

रहीम दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें रिश्तों की कदर करनी चाहिए और एक-दूसरे के प्रति आदर-सम्मान का भाव रखना चाहिए क्योंकि अगर  एक बार रिश्ता टूट जाता है तो फिर कितनी भी कोशिश क्यों न कर लें यह जोड़ा नहीं जा सकता है।

रहीम दास का दोहा नंबर 4 – Rahim Ke Dohe 4

इस दोहे के माध्यम से हिन्दी साहित्य के महान कवि रहीम दास जी ने यह समझाने की कोशिश की है कि इंसान के गुणों की पहचान इंसान की वाणी से होती है।

दोहा:

“दोनों रहिमन एक से, जों लों बोलत नाहिं। जान परत हैं काक पिक, रितु बसंत के नाहिं”

अर्थ:

रहीम कहते हैं कि कौआ और कोयल रंग में एक समान काले होते हैं। जब तक उनकी आवाज ना सुनायी दे तब तक उनकी पहचान नहीं होती लेकिन जब वसंत रुतु आता हैं तो कोयल की मधुर आवाज से दोनों में का अंतर स्पष्ट हो जाता हैं।

क्या सीख मिलती है-

रहीम दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हम किसी भी व्यक्ति के गुणों और उसके स्वभाव का अंदाजा उसकी वाणी से लगा सकते हैं अर्थात हमें भी मधुर भाषा का इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि मधुर आवाज सबको अपनी तरफ आर्कषित करती है और इससे हम अपने कई बिगड़े कामों को भी कर सकते हैं।

रहीम दास का दोहा नंबर 5 – Rahim Ke Dohe 5

कई लोग ऐसे होते हैं जो इंसान के नीच स्वभाव को जानते हुए भी उनसे दोस्ती कर लेते है या फिर किसी बात को लेकर झगड़ा कर लेते हैं। रहीम दास जी ने इस दोहे में ऐसे ही लोगों के लिए बड़ी सीख दी है।

दोहा:

“रहिमन ओछे नरन सो, बैर भली न प्रीत। काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँती विपरीत।”

अर्थ:

गिरे हुए लोगों से न तो दोस्ती अच्छी होती हैं, और न तो दुश्मनी। जैसे कुत्ता चाहे काटे या चाटे दोनों ही अच्छा नहीं होता।

क्या सीख मिलती है:

महाकवि रहीम दास जी के इस दोहे से हमें यह सीखने को मिलता है कि इंसान के स्वभाव को जानकर ही उससे दोस्ती करनी चाहिए क्योंकि गलत इंसान से दोस्ती और दुश्मनी दोनों ही खराब होती हैं।

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