Hindi, asked by archanarawat2009, 3 months ago

रहीम के दोहे 2. दीन॥ 3. 4. 1. बसि कुसंग चाहत कुसल, यह रहीम जिय सोस। महिमा घटी समुद्र की, रावन बस्यो परोस ॥ कदली, सीप, भुजंग-मुख, स्वाति एक गुन तीन । जैसी संगति बैठिए, तैसोई फल रहिमन ओछे नरन सौं, बैर भलो ना प्रीति । काटें चाटें स्वान के, दुहूँ भांति विपरिति ॥ कहु रहीम कैसे निभै, बेर के र को संग। वे डोलत रस आपने, उनके फाटत अंग ॥ कहि रहीम सम्पति सगे, बनत बहुत बहु रीति। बिपति-कसौटी जे कसे, ते ही सांचे मीत ।। जंब लगि बित्त न आपुने, तब लगि मित्र न होय। रहिमन अम्बुज अम्बु बिनु, रवि नहिंन हित होय॥ रहिमन उजली प्रकृत को, नहीं नीच को संग। करिया बासन कर गहे, कालिख लागत अंग॥ जो रहीम उत्तम प्रकृति, का कर सकै कुसंग। चन्दन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग ।। 5. 6. 7. 8. 50​

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Answered by tanishdiggal11
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