Hindi, asked by imranalam260060, 6 months ago

रहीम ने छोटी सोच रखने वाला अर्थात् नीच व्यक्ति किसे कहा है? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए​

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Answered by lekshmipshine
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Explanation:

1. रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो छिटकाय ।

टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय ॥

अर्थ : कवी रहीम जी कहते हैं प्रेम रूप का धागा जब एक बार टूट जाता है, तो दोबारा पहले की तरह जोड़ना बहुत मुश्किल हो जाता है या नहीं हो पता है। अगर उसे जोड़ भी दिया जाये तो उसमे गांठ आ जाता है। उनके अनुसार प्रेम का रिश्ता बहुत ही नाज़ुक होता है और बिना सोचे समझे इसे तोडना बिलकुल उचित नहीं होता। और टूटे हुए रिश्ते को फिर से जोड़ने पर संदेह हमेशा रह जाता है इसलिए प्रेम से रहना चाहिए ।

2. रहिमन निज मन की व्यथा, मन में राखो गोय।

सुनि इठलैहैं लोग सब, बाटि न लैहै कोय॥

अर्थ : कवी रहीम जी इस दोहे में कहते हैं हमें अपने मन के दुख को अपने मन में ही रखना चाहिए क्योंकि किस दुनिया में कोई भी आपके दुख को बांटने वाला नहीं है। इस संसार में बस लोग दूसरों के दुख को जान कर उसका मजाक उडाना ही जानते हैं।

3. एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय ।

रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय॥

अर्थ : इस दोहे के दो अर्थ और सिख हमें मिलते हैं। पहला यह कि रहीम दस जी कहते हैं कि जिस प्रकार किसी पौधे के जड़ में पानी देने से वह अपने हर भाग तक पानी पहुंचा देता है उसी प्रकार मनुष्य को भी एक ही भगवान की पूजा-आराधना करनी चाहिए। ऐसा करने से ही उस मनुष्य के सभी मनोरथ पुरे होंगे। दूसरा अर्थ यह है कि जिस प्रकार पौधे को जड़ से सींचने से ही फल फूल मिलते हैं उसी प्रकार मनुष्य को भी एक ही समय में एक कार्य करना चाहिए तभी उसके सभी कार्य सही तरीके से सफल हो पाएंगे।

4. चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध-नरेस ।

जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत यह देस॥

अर्थ :इस दोहे में रहीम दस जी चित्रकूट को मनीराम और शांत स्थान बताते हुए सुन्दर रूप में वार्नर कर रहे हैं। वो कह रहे हैं चित्रकूट एक ऐसा भव्य स्थान है अवध के राजा श्री राम अपने वनवास के दौरान रहे थे। जिस किसी व्यक्ति पर भी संकट आता है वह इस जगह शांति पाने के लिए इस स्थान चला आता है।

. दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं ।

ज्‍यों रहीम नट कुण्‍डली, सिमिटि कूदि च‍ढ़ि जाहिं॥

अर्थ : इस दोहे में रहीम दस जी एक दोहे की शक्ति की व्याख्या कर रहे हैं और समझा रहे हैं कि जिस प्रकार एक नट कुंडली मरने वाला व्यक्ति ऊंचाई को चुने के लिए अपने शरीर को घुमा कर छोटा कर लेता है उसी प्रकार एक दोहे में इतने कम अक्षर होते हुए भी इसके अर्थ कितने गहरे होते हैं।

6. धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पिअत अघाय ।

उदधि बड़ाई कौन हे, जगत पिआसो जाय॥

अर्थ : रहीम दास जी इस दोहे में की कीचड़ का पानी बहुत ही धन्य है क्योंकि उसका पानी पी कर छोटे-मोटे कीड़े मकोड़े भी अपनी प्यास बुझाते हैं परन्तु समुद्र में इतना जल का विशाल भंडार होने के पर भी क्या लाभ जिसके पानी से प्यास नहीं बुझ सकती है। यहाँ रहीम जी कुछ ऐसी तुलना कर रहे हैं जहाँ उदहारण के लिए देखें तो ऐसा व्यक्ति जो गरीब होने पर भी लोगों की मदद करता है परन्तु एक ऐसा भी व्यक्ति है जिसके पास सब कुछ होने पर भी वह किसी की भी मदद नहीं करता है यानी की परोपकारी व्यक्ति ही महान होता है।

7.  नाद रीझि तन देत मृग, नर धन हेत समेत।

ते रहीम पशु से अधिक, रीझेहु कछू न देत॥

अर्थ : रहीम दस जी इस दोहे में कहते हैं – मृग मधुर तान पर मोहित हो कर स्वयं को शिकारी को सौप देता है और मनुष्य किसी भी कला से मोहित हो कर उसे धन देते हैं। दुसरे पंक्ति में वो कहते हैं कि जो मनुष्य कला पर मुग्ध होने के बाद भी उसे कुछ नहीं देता है वह पशु से भी हीन है। हमेशा कला का सम्मान करो और उससे प्रभावित होने पर दान जरूर करें।

8. बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय ।

रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय॥

अर्थ : रहीम जी इस दोहे में कहते हैं जिस प्रकार फाटे हुए दूश को मथने से मक्खन नहीं निकलता है उसी प्रकार प्रकार अगर कोई बात बिगड़ जाती है तो वह दोबारा नहीं बनती। इसलिए बात को संभालें ना की बिगड़ने दें।

9. रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि ।

जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तलवारि॥

अर्थ : रहीम दस जी ने इस दोहे में बहुत ही अनमोल बात कही है। उनका कहना है जिस जगह सुई से काम हो जाये वहां तलवार का कोई काम नहीं होता है। हमें समझना चाहिए कि हर बड़ी और छोटी वस्तुओं का अपना महत्व अपने जगहों पर होता है और बड़ों की तुलना में चोटों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए।

10. रहिमन निज संपति बिना, कोउ न बिपति सहाय ।

बिनु पानी ज्‍यों जलज को, नहिं रवि सकै बचाय॥

अर्थ : रहीम जी इस दोहे में बहुत ही महत्वपूर्ण बा कह रहे है। वो कहते हैं जिस प्रकार बिना पानी के कमल के फूल को सूखने से कोई नहीं बचा सकता उसी प्रक्रार मुश्किल पड़ने पर स्वयं की संपत्ति ना होने पर कोई भी आपकी मदद नहीं कर सकता है। रहीम जी इस दोहे के माध्यम से संसार के लोगों को समझाना चाहते हैं की मनुष्य को निज संपत्ति का संचय करना चाहिए ताकि मुसीबत म्विन वह उसके काम आये।

11. रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।

पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥

अर्थ : कवी रहीम जी कहते हैं इस संसार में पानी के बिना सब कुछ बेकार है इसलिए पानी को हमें बचाए रखना चाहिए। पानी के बिना सब कुछ व्यर्थ है चाहे वह मनुष्य, जिव-जंतु हों या कोई वस्तु। ‘मोती’ के विषय में बताते हुए रहीम जी कहते हैं पानी के बिना मोती की चमक का कोई मूल्य नहीं है। ‘मानुष’ के सन्दर्भ में पानी का अर्थ मान-सम्मान या प्रतिष्ठा को बताते हुए उन्होंने कहा है जिस मनुष्य का सम्मान समाप्त हो जाये उसका जीवन व्यर्थ है।

12. छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात।

कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥

अर्थ : रहीम जी कहते है जिस प्रकार कोई कीड़ा अगर लात मारता है तो कोई फर्क नहीं पड़ता है या हानि नहीं होती है उसी प्रकार छोटो को उत्पात यानि की बदमाशी शोभा देता है और बड़ों को उनके बदमाशी को माफ़ करना क्योंकि छोटे बच्चों का बदमाशी भी तो चोट ही होता है।

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