रहिमन कठिन चिताहुँ ते, चिंता को चित चेत। चिता दहति निर्जीव को, चिंता जीव समेत ।।4।।
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Explanation:
रहिमन’ कठिन चितान तै, चिंता को चित चैत। चिता दहति निर्जीव को, चिन्ता जीव-समेत॥
अर्थ
चिन्ता यह चिता से भी भंयकर है। सो तू चेत जा। चिता तो मुर्दे को जलाती है, और यह चिन्ता जिन्दा को ही जलाती रहती है।
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