रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय।। alankar
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रहिमन निज मन की बिधा मन ही राखो गोय
सुनी अठिलेहैं लोग सब बाँटि न लैहैं कोई ।।
संदेह अलंकार
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