रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना मिले. मिले गाँठ परि जाय।
रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय।।
एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहिं सीचिबो, फूलै फलै अघाय।।
चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध-नरेस।
जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत यह देस। translation please
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रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय॥
प्रेम का बंधन किसी धागे के समान होता है जिसे कभी भी झटके से तोड़ नहीं देना चाहिए बल्कि उसकी हिफाजत करनी चाहिए। क्योंकि जब कोई धागा एक बार टूट जाता है तो फिर उसे जोड़ा नहीं जा सकता। जोड़ने की कोशिश में उस धागे में गाँठ पड़ जाती है। किसी से रिश्ता जब एक बार टूट जाता है तो फिर उस रिश्ते को दोबारा जोड़ा नहीं जा सकता।
रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहै कोय॥
अपने दर्द को दूसरों से छुपा कर ही रखना चाहिए। जब आपका दर्द किसी अन्य को पता चलता है तो लोग उसका मजाक ही उड़ाते हैं। कोई भी आपके दर्द को बाँट नहीं सकता।
एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय॥
एक बार में कोई एक कार्य ही करना चाहिए। एक काम के पूरा होने से कई काम अपने आप हो जाते हैं। यदि एक ही साथ आप कई लक्ष्य को प्राप्त करने की कोशिश करेंगे तो कुछ भी हाथ नहीं आता। यह वैसे ही है जैसे जड़ में पानी डालने से ही किसी पौधे में फूल और फल आते हैं।
चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध-नरेस।
जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत यह देस॥
जब राम को बनवास मिला था तो वे चित्रकूट में रहने गये थे। चित्रकूट घनघोर वन में होने के कारण रहने लायक जगह नहीं थी। ऐसी जगह पर वही रहने जाता है जिस पर कोई भारी विपत्ति आती है।