रहिमन वे नर मर चुके, जे कहुँ माँगन जाँहि।
उनते पहले वे मुए, जिन मुख निकसत नाँहि।।1।।
कहि रहीम पर काज हित, संपति संचहि सुजान।B॥
दोनों रहिमन एक से, जो लौं बोलत नाँहि
जान परत हैं काक-पिक, रितु बसंत के माँहि।।2।।
तरुवर फल नहीं खात है, सरवर पियहि न पान।
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कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीत।
बिपति कसौटी जे कसे, सो ही साँचे मीत।।4।।
रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनि अठिलैहें लोग सब, बाँटि न लैहें कोय।।5।।
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।
जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तलवारि।।6।।
-अब्दुर्रहीम ‘खानखाना'
Q-रहीम ने कैसे व्यक्ति को मरे व्यक्ति के समान बताया है?
A- what is the answer please tell
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रहीम जी ने कहीं से भीख या कोई और चीज़ माँगने वाले व्यक्ति को मरे व्यक्ति के समान बताया है।
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