रहिमन वे नर मर चुके, जे कहुँ माँगन जाँहि।
उनते पहले वे मुए, जिन मुख निकसत नाँहि।।1।।
कहि रहीम पर काज हित, संपति संचहि सुजान।B॥
दोनों रहिमन एक से, जो लौं बोलत नाँहि
जान परत हैं काक-पिक, रितु बसंत के माँहि।।2।।
तरुवर फल नहीं खात है, सरवर पियहि न पान।
1
कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीत।
बिपति कसौटी जे कसे, सो ही साँचे मीत।।4।।
रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनि अठिलैहें लोग सब, बाँटि न लैहें कोय।।5।।
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।
जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तलवारि।।6।।
-अब्दुर्रहीम ‘खानखाना'
Q-तरुवर और सरोवर की क्या विशेषता है।
A - any buudy please tell me the answer fast
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वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते हैं और सरोवर (तालाब) भी अपना पानी स्वयं नहीं पीती है। इसी तरह अच्छे और सज्जन व्यक्ति वो हैं जो दूसरों के कार्य के लिए संपत्ति को संचित करते हैं
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यहां पर तरुवर शब्द का अर्थ है -पेड़
जैसे एक पेड़ अपने फल खुद नहीं खाता उसी प्रकार से एक सरोवर भी अपना पानी खुद नहीं पीता
इस प्रकार से पेड़ और सरोवर परोपकार का ही काम करते हैं
एक अंतिम लाइन जो आपसे छूट गई है उसका अर्थ यहां पर बनेगा कि यह दोनों सज्जन व्यक्ति के समान दूसरों का भला ही करते हैं अर्थात परोपकार ही करते हैं
और यही इन दोनों की विशेषता भी ह है
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