रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में, सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में। अनाथ कौन है यहाँ? त्रिलोकनाथ साथ हैं, दयालु दीनबंधु के बड़े विशाल हाथ हैं। इन पंक्तियों का भावार्थ होगा *
1. हमें गर्वरहित जीवन जीना चाहिए।
3. हमें शक्ति का प्रदर्शन करना चाहिए।
2.हमे गर्वयुक्त जीवन जीना चाहिए।
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2 ☺️ हमे गरवयुक्त जीवन जीना चाहिए।
क्योंकि जहा सम्मान है , वही मान है।
धन्यवाद।
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