रहो न भूलकर कभी र्दांध तुच्छ कवर्त् र्ें,
सनार्थ जान आपको करो न गवम कचर्त् र्ें |
अनार्थ कौन है यहाँ ? कत्रलोकनार्थ सार्थ हैं,
दयालुदीनबंधुकेबड़ेकवशाल हार्थ है|
अतीव भाग्यहीन है अधीर भाव जो करे,
वही र्नुष्ट्य हैकक जो र्नुष्ट्य केकलए र्रे ||
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कवि के अनुसार समृद्धशाली होने पर भी कभी अहंकार नहीं करना चाहिए। यहाँ कोई भी अनाथ नहीं है क्योंकि ईश्वर ही परमपिता है। धन और परिजनों से घिरा हुआ मनुष्य स्वयं को सनाथ अनुभव करता है। इसका परिणाम यह होता है कि वह स्वयं को सुरक्षित समझने लगता है। इस कारण वह अभिमानी हो जाता है। कवि कहता है कि सच्चा मनुष्य वही है जो संपूर्ण मानव जाति के कल्याण के लिए मरता और जीता है। वह आवश्यकता पड़ने पर दूसरों के लिए अपना शरीर भी बलिदान कर देता है। भगवान सारी सृष्टि के नाथ हैं, संरक्षक हैं, उनकी शक्ति अपरंपार है। वे अपने अपार साधनों से सबकी रक्षा और पालन करने में समर्थ हैं। वह प्राणी भाग्यहीन है जो मन में अधीर, अशांत, असंतुष्ट और अतृप्त रहता है और अधिक पाने की ललक में मारा-मारा फिरता है। अतः व्यक्ति को समृद्धि में कभी अहंकार नहीं करना चाहिए।
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IV. उसने मुझसे कहा कि वह तुमसे मिलकर आ रहा है |